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सावन में उमंगे भी उठ रहीं ऐसे चातक वर्षा को बेकरार हो जैसे अब नहीं मुमकिन विरह वेदना पर मिलन का जतन लगाऊं कैसे मत तड़पाओ करो कुछ चिंतन भर लो ...