कश्ती

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राम लखन सीता सहित जब पहुंचे गंगा तट हे मांझी ! मुझे नैया पार करा दे, मिले ना मेरे कदमो के निशा मुझे उस राह पहुंचा दो..... देख त्रिलोकी का वनवासी ...

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