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अन्ततः प्रोफेसर डीपी झा ने देहदान का फैसला ही किया। उनकी ज़िन्दगी एक आदर्श थी और वे चाहते थे उनकी मौत भी आदर्श बने। उनके दोस्तों ने ठीक ही सुझाव दिया ...