किस्सा एक त्रासद फंतासी का

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वह एक निर्जन जगह थी, जहां तूफान की तरह उन्मत्त दौड़ती राजधानी एक्सप्रेस एकाएक रुकी थी। रात के दो बजे थे। चारों ओर अंधेरा और सन्नाटा था-एकदम ठोस। न कोई आहट, ...

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