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श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा........ डोरबेल में बजा यह गाना जैसे ही श्रुति के कानों में पड़ा उसने गालों पर लुढ़क आएं ऑंसूओं अपने दोनों हाथों से पोंछा ...