Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय प्रेम

प्रेम 
उस इत्र के समान हैं 
जो थोड़ा सा बिखर 
जाये तो पुरा जीवन
महका देता है….

प्रेम 
उस मासूम बच्चे की
तरह है जो छल नहीं 
जानता ….

प्रेम 
सावन की पहली बारिश 
की तरह है जो मिट्टी में 
पड़ते ही मिट्टी की सुगंध 
की तरह जीवन में ताजगी
भर देता है….

प्रेम 
नमक की तरह होता है जो
हमारे जीवन के रोमांच को 
बढ़ा देता है ….

प्रेम 
कभी भी अपने अस्तित्व को
नहीं खोता वो हमेशा पवित्र 
रहता हैं…..

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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5 Comments

Pranali shrivastava

31-Jan-2023 03:03 PM

V nice 👍🏼

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Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 11:49 AM

Nice

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वानी

30-Jan-2023 11:38 AM

उस दुआ जैसा है जो बिन मांगे पूरी होती है कभी मांग कर भी अधूरी रह जाती है

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