अपनी पगड़ी अपने हाथ
अपनी पगड़ी अपने हाथ मुहावरे
पर आधारित कहानी - अन्तर्ध्यान
कृष्णा एव रोशन के अचानक लापता होने के बाद सिराज को गांव नगर के सभी लोग यही कहते कि नेकी का जमाना ही नही रहा सिराज सबकी बातों को सुनते उनका कलेजा शब्द वाणों से छलनी हो जाता मगर करते भी क्या वक्त के हाथों बेबस थे ।
बाहर के लोग जो भी कहते उसका मलाला सिराज को बहुत नही होता लेकिन घर पर चारो बेटे इकबाल मंसूर यूसुफ और इरफ़ान जब ताना देते तो सिराज उनको बहुत समझाते और कहते ये सब ख़ुदा का फजल है जिसे वक्त के साथ कबूलने में ही उनकी बन्दगी है वैसे भी #अपनी पगड़ी अपने हाथ # उछालने से क्या फायदा जो होना था सो हो गया लौट कर तो आने वाला नही ।
बेटे खुदा कि करम से नेक दिल थे अब्बा हुजूर के परेशानियों को समझते थे और जब भी सिराज को दुखी देखते चुप हो जाते ।
सिराज जब बेगम रुखसार के पास अकेले होते तो फुट फूट कर रोते हुए कहते बेगम खुदा ने जरूर मेरे किसी गलत काम के लिए सजा के तौर पर कबाड़ी को मुझसे कृष्णा नाम दिलवाया और उसकी परिवरिश कराई चलता किया मुझे अब भी यकीन नही हो रहा है कि कृष्णा इतना गैरत मंद एहसान फ़रोस मतलबी इंसान इंसान निकलेगा ।
अब सारः धुंनने से फायदा भी क्या इज्जत तो मटियामेट हो गयी अब और अपनी पगड़ी उछालने से कोई फायदा नही है #अपनी पगड़ी अपने हाथ#लोग जो कहते है जरूर मेरे सीने के आर पार से निकलते है मगर क्या करे ख़ुदा को यही मंजूर है यह उनका ही फैसला है कुछ भी कहना मुनासिब नही होगा वह तो परवादिगार है रहीम है करीम है आगे जो भी करेगा अच्छा ही करेगा बेकार पछताने से कोई फायदा नही होने वाला।
सिराज की जिंदगी जिल्लत जलालत के तानों से रोज जख्मी ही होती फिर भी ना तो उन्होंने गांव के बाहर सड़क पर बने पुल के नीचे अपनी रविवारीय पाठशाला बन्द की ना ही अपने नेक नियत एव इंसानी आचरण में कोताही पहले कि तरह ही दुखी को देख फौरन मदद को हाथ बढाते ।
गांव वाले सिराज को देखते ही कहने लगते यह आदमी किस मिट्टी का बना है इतना बड़ा धोखा खाने के बाद भी नही बदला और ज्यादा इंसानियत और नेकी का आलम्बदार मजबूत इरादों का खुदा का बंदा जैसा है।
रविवार का दिन था पल के नीचे सिराज कि कक्षा चल रही थी दिन के दो बजे तभी पुल के ऊपर से गुजरती एक ट्रक जो कोयले से लदी थी कुछ दूर जाकर रुकी ड्राइवर नीचे उतरा और सीधे पुल के नीचे चलते फिरते स्कूल पर पहुंचा और बोल बोला सिराज से मास्टर साहब आप ही है और सिराज के पैर छूने के लिए झुका तभी सिराज उठ खड़े हुए और बोले जनाब इस्लाम मे खुदा के हुजूर में सर झुकाने के अलावा कही भी सर झुकना मना है उसी के हुजूर में सर झुकाओ वैसे कौन है आप ?
समीर मेरा नाम समीर है और मैं झारखण्ड के कोयले खदानों से कोयला लाद कर जा रहा था जब मैं कोयला लाद कर झरिया से चला तब डॉ कृष्णा ने मुझसे कहा की मैं आप से मिलूं और आपके खैर मकदम कि जानकारी लू इतना सुनते ही सिराज के जख्मो पर जैसे किसी ने नमक छिड़क दिया हो बड़े तैस में बोले मत नाम लो कमबख्त बदजात का उसने मेरी पगड़ी सरे बाज़ार उछाल दी समीर बोला खुदा के वास्ते मेरी पूरी बात सुन लीजिये।
बहुत मिन्नत के बाद सिराज ने कहा बताओ क्या बताना चाहते हो समीर ने बताना शुरू किया बीस वर्ष पहले कृष्णा और रौशन झरिया पहुचे वहां उन्हें डॉ तौक़िफ़ ने अपने यहाँ रखा जो बहुत मशहूर डॉक्टर थे और कृष्णा को पढ़ाया लिखाया डॉक्टरी के सारे हुनर सिखाये और एक क्लिनिक खोलवा दी खुदा के करम एव रोशन कृष्णा कि मेहनत से उनका दवाखाना बहुत जोरो पर चल निकला दवाखाने में का नाम है सज्जन सिराज हॉस्पिटल चुकी कृष्णा आदिवासी सज्जन कि औलाद एव सिराज कि परिवरिश है यह बात झरिया का बच्चा बच्चा जानता है ।
वहाँ कृष्णा आदि वासी एव इंसानियत सिराज कॉलेज खोला है जो इलाके का बहुत उम्दा स्कूल है कुछ ही दिनों में कृष्णा व रौशन यहां आने वाले है और यहां भी सिराज चलता फिरता स्कूल खोलने वाले है आप यकीन करें ना करे कुछ दिन बाद खुद देख लीजिएगा जब भी कृष्णा रौशन से कोई भी पूछता की आप लोग सिराज को इतनी इज़्ज़त देते है तो जाते क्यो नही या उनको बुलाते क्यो नही?
जबाब यही रहता कि सिराज अब्बा कि आंखों में देखे ख्वाब को जब तक हकीकत का जामा नही पहना देते तब तक नही जायेगे अब वक्त कि आवाज है की आपके खुली नज़रों से देखे खाबो को जमी पर उतारा जा सके ।
यहां बनने वाले स्कूल में यतीम बच्चों को या जिंनके माँ बाप नही है पढा सकते उनके लिए रहने खाने कपड़े किताब आदि कि सभी व्यवस्था मुक्त होगी ।
सिराज ने कहा कि इतना बताने के लिए कहते हुए कोई खत नही दिया है कृष्णा ने तुरंत ही समीर ने एक लिफाफा निकाल कर सिराज के हाथों थमाते हुये बोला दिया है न और समीर खुदा हाफिज कह कर चल दिया ।
सिराज ने जब लिफाफा खोला तब देखा कि सादा कागज जिस पर रोशन एव कृष्णा ने खून से सिर्फ यही लिखा था माफी माफी सिराज कि आंखे भर आयी रात मगरिब कि नबाज में उन्होंने खुदा कि मेहरबानी के लिए सुक्रिया में नवाज़ अदा किया और कृष्णा रौशन का इंतजार करने लगे बेगम एव बच्चों से कुछ नही बताया।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश
Gunjan Kamal
02-Feb-2023 12:51 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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सीताराम साहू 'निर्मल'
01-Feb-2023 11:59 PM
बहुत खूब
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Varsha_Upadhyay
01-Feb-2023 06:51 PM
Nice
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