गीत- मनभावन सावन
सरसी छंद(16/11)
*गीत-मनभावन सावन*
देख गगन में काले बादल,
वन में नाचे मोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
नभ से गिरतीं जल की बूँदें,
गाएँ मधु संगीत।
प्यासे मन को जल परोस कर,
भरें कलश जो रीत।
मगन गगन जनु उतर अवनि पर,
सींचे तन-मन कोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
धानी चुनरी ओढ़ धरा भी,
किए रूप-श्रृंगार।
निरख अवनि का रूप सुहाना,
हर्षित हृदय अपार।
रात सुहानी देख कहे मन-
हो न कभी अब भोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
उमड़-घुमड़ कर काले बादल,
करें नीर बौछार।
भीगी गोरी तन-मन हर्षित,
नाचे उछल निहार।
दमक-दमक कर चपल दामिनी,
दे जियरा झकझोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
जहाँ देखिए जल ही जल है,
खेत और खलिहान।
गली-गली सब सड़क-रास्ते,
भीगे सभी मकान।
नदी-ताल-पोखर जल-पूरित,
प्यासा किंतु चकोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
सावन की मादकता प्यारी,
चहुँ-दिशि रहे बहार।
साजन गए विदेश कभी के,
सजनी करे पुकार।
जीवन-आस लिए यह आता,
महि-नभ अनुपम डोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
सभी लोग हर्षित हो जाते,
बालक-वृद्ध-जवान।
मन-मयूर सबका कर नर्तन,
चखे मधुर पकवान।
सावन में कजरी सब गाते,
होकर भाव-विभोर।
मनभावन सावन है आया-
मुदित प्रकृति चहुँ-ओर।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
डॉ. रामबली मिश्र
31-Jan-2023 09:24 PM
बेहतरीन
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Rajeev kumar jha
31-Jan-2023 11:52 AM
Nice
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