नित नूतन संदेश.....
गीत(16/14)
नित नूतन संदेश.....
नित नूतन संदेश सवेरा,
लेकर जग में आता है।
कुछ के लिए अशुभ यह होता,
कुछ का मान बढ़ाता है।।
रात अँधेरी हो जाती है,
पूर्णचन्द्र की रजनी में।
हो जाता परिणाम विरोधी,
कभी सोच शुचि कथनी में।
है विचित्र यह खेल जगत का,
रिपु भी गले लगाता है।।
कुछ का मान बढ़ाता है।।
कभी शरद है,कभी गरम है,
मौसम बदला करता है।
नियम प्रकृति का है परिवर्तन,
सावन फागुन लगता है।
खिला पुष्प काँटों में हँस कर,
इसकी कथा बताता है।।
कुछ का मान बढ़ाता है।।
नीर-स्रोत सागर जल देता,
माटी अन्न उगाती है।
छायादार विविध वृक्षों से,
फल यह दुनिया पाती है।
सुख के सँग यह दुख भी पलकर,
अपना धर्म निभाता है।।
कुछ का मान बढ़ाता है।।
निशि-वासर का मेल अनूठा,
क्रांति-शांति दोनों पलतीं।
पतझर संग वसंत झूमता,
ऋतु दोनों शोभा बनतीं।
जहाँ जन्म है,मृत्यु वहीं है,
जन्म जगत कहलाता है।।
कुछ का मान बढ़ाता है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Rajeev kumar jha
31-Jan-2023 11:52 AM
Nice
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