Gunjan Kamal

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नया स्कूल नए अध्यापक और दोस्त




मेरी सच्ची साथी! जब मैं तुमसे पिछली बार मिलने आई थी तब मैंने अपने मिडिल स्कूल में हुई उस घटना के बारे में जिक्र किया था जिसे याद करते हुए आज भी मुझे बहुत बुरा लगता है लेकिन किसी भी चीज को लेकर बैठने से कुछ नहीं होता क्योंकि जिंदगी चलती ही रहती है और उस लड़के के स्कूल छोड़कर जाने के बाद धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा था और २ साल के बाद मैं भी मिडिल स्कूल पास करके हाई स्कूल में आ गई थी। इस हाईस्कूल में  मेरी मां और उनके स्कूल में मुझे प्यार करने वाले अध्यापक अध्यापिकाओं का साथ नहीं था क्योंकि यहां पर सब कुछ अलग था। अध्यापक और अध्यापिकाएं भी अलग थी और पढ़ाई का तनाव भी मिडिल स्कूल की अपेक्षा ज्यादा ही था। 

मेरी सच्ची साथी! नया स्कूल तो था ही इस स्कूल में नए दोस्त भी मुझे मिले। उन दोस्तों में से दो दोस्त ऐसे भी हैं जिनका साथ आज भी मेरी जिंदगी में है। हां तो मैं उस नए  स्कूल और नए  दोस्त के बारे में बात कर रही थी। आठवीं क्लास में मेरा नामांकन उसी स्कूल में हुआ था उस वक्त मेरी कक्षा में  क्रमांक ४९ था। उस स्कूल में ऐसा नियम था कि जिनके क्रमांक जैसे हो वैसे ही सबको डेस्क बेंच पर बैठना होता था जिस कारण मेरा पीछे ही बैठना हो पाता था। जहां मिडिल स्कूल में में सबसे आगे बैठती थी उसी स्कूल में मुझे पीछे बैठना बिल्कुल भी पसंद नहीं था और जब मुझे यह बात पता चली कि यहां पर नंबर के अनुसार फर्स्ट सेकंड थर्ड और उससे आगे के स्थान क्रमांक में मिलता है तब मैंने यह ठान लिया था कि मुझे प्रथम से लेकर पांचवें स्थान तक में जगह बनाना ही है। 

मेरी सच्ची साथी! मैंने जोर शोर से पढ़ाई शुरू कर दी। कक्षा में मेरी यही कोशिश रहती थी कि हर अध्यापक और अध्यापिका कि मैं मनपसंद छात्रा बनूं। इसके लिए मुझे कठिन परिश्रम की जरूरत थी और मैंने ऐसा किया भी। एकदम शुरू में तो ऐसा नहीं हो पाया था लेकिन धीरे-धीरे मैंने सभी विषय के अध्यापक और अध्यापिका का ध्यान अपनी ओर खींचा। हर ली गई परीक्षा में अच्छे नंबर लाकर मैं धीरे-धीरे उनकी मनपसंद छात्रा बनी भी। 

मेरी सच्ची साथी! तीन साल के हाई स्कूल के अपने सफर में मुझे जो कुछ भी मिला उसका श्रेय मैं अपने कोचिंग के सर को भी देना चाहूंगी उनकी मदद से ही मैं स्कूल में लगातार अच्छा प्रदर्शन करती रही थी। मैं सब से दोस्ती नहीं कर पाती।  मिडिल स्कूल में भी मेरे गिने-चुने दोस्त ही  थे।  हाईस्कूल में आने के बाद में मुश्किल से ५ या ६ लड़कियां ही थी जो मेरी दोस्त थी। मां के स्कूल में तो लड़कों से भी बातचीत हो जाती थी लेकिन हाई स्कूल में हम लड़कियां  ही आपस में बात करती थी। उस वक्त लड़कियां लड़कों से बात नही करती थी और ना लड़के ही लड़कियों से।  उस समय आज की भांति लड़के -  लड़कियां आपस में बातें नहीं करते थे क्योंकि हमारे समाज में उस वक्त लड़के-  लड़कियों का आज  की तरह बातें करना अच्छा नहीं माना जाता था। 

मेरी सच्ची साथी! हाईस्कूल की बहुत सारी यादें जहन में तो मौजूद है लेकिन कभी-कभी जल्दबाजी में बहुत बातें याद आती ही नहीं है। अभी भी कुछ ऐसी बातें हैं जो याद नहीं आ रही है लेकिन जैसे ही याद आएगी मैं बताऊंगी।  अगली बार जब तुमसे मिलने आऊंगी उन‌ बातों को तुम्हारे साथ अवश्य साझा करूंगी तब तक के लिए मुझे जाने की इजाजत दो। 

🙏🏻🙏🏻बाय बाय 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💗💞💗




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9 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:44 PM

Nice

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अदिति झा

03-Feb-2023 01:19 PM

Nice 👍🏼

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Bahut achhi rachana 👌

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