दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय काव्योदय
#काब्योदय
जवां जब इश्क़ हो जाए तो लज़्ज़त और बढ़ती है ।
जो ज़िद पे हुस्न आ जाए तो हिम्मत और बढ़ती है।।
हटा दे इन घटाओं को गुले-रुख़सार से अपने
तेरे दीदार को जानां तबियत और बढ़ती है।।
गुलों को शोखियाँ देती लबों की ये तेरी नरमी
तेरे छूने से शाखे-गुल की रंगत और बढ़ती है।।
दहकता हुस्न है तेरा ख़ुदा की है नियामत ये
क़यामत उस पे ये पर्दा कि शोहरत और बढ़ती है।।
खुदारा ख़ैर हो दिल की न क़ाबू में जिगर मेरा
वो पलकें जब झुकाते हैं मुहोब्बत और बढ़ती है।।
लबों से शबनमी क़तरे गुलों से जब चुराए वो
कहें क्या कमसिनी,हुस्नो,नज़ाक़त और बढ़ती है।।
दबा कर होंठ दांतों में दुपट्टा ओढ़ना सर पे
कसम देखकर तुझको लोगों की आफ़त और बढ़ती है ।।
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सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Gunjan Kamal
05-Feb-2023 02:18 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
04-Feb-2023 09:19 AM
बहुत खूब
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
03-Feb-2023 11:05 PM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम
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