Priyanka06

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लेखनी प्रतियोगिता -03-Feb-2023 बाबुल तेरे आंगन की हूं कली

शीर्षक-बाबुल के आंगन की कली


बाबुल तेरे अंगने की कली,
अब खिलने दो फली।

बाबुल ने सींचा बड़े प्यार से,
सुमुन में बनी इस संसार की।

जब जवानी की ऋतु छाई,
चिंता की रेखा तुझ पर मंडराई।

सोच सोच कर दिल मेरा बेठा,
कैसी रीति रिवाज है बहना।

तेरे आंगन की फुलवारी,
ले चले कली तुम्हारी।

मां की गोद में बैठी,
ऐसे लगा जैसे छीन ली गोदी।

कर दिया मेरा कन्यादान,
मुरझा गई कली आज।

हो रही थी विदाई,
सारी रस्मो की हुई अदाई।

बाबुल से मैंने पूछा,
अब अंगना में नहीं मेरा कौना।

ताऊ चाचा भाई,
सभी ने पलकें बिछाई।

कैसी ये रीत बनाई,
होती बेटी प्रीत पराई।

बाबूल नाजों से करता देखरेख,
फिर क्यों नहीं जताता अपना हक।

जैसे ही होती नयी भोर,
चुन कर ले जाता कोई और।

बेटी की सुनकर यह बातें,
पिता की नम हुई आंखें।

सुन मेरे आंगन की कली,
ये रीति रिवाज ऐसी बनी।

इस घर में बनती कली,
उस घर में पकती फली।

सुन मेरी लाडो यह बातें,
नम ना कर तेरी ये आंखें।

अपना यह दुनियादारी,
बनेगी नई रिश्तेदारी।

जैसे यहां महकती,
वैसे ही वहां चहकना।

सबको तू अपना बनाना,
रीति रिवाजों को बनाना गहना ।

अपने तन पर सजाना,
आंखों में इसको जड़ाना।

बस इतना ही है कहना,
मेरी कली तू खिलकर रहना

लेखिका
प्रियंका भूतड़ा "प्रिया"

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8 Comments

अदिति झा

06-Feb-2023 12:07 PM

Nice 👌

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Gunjan Kamal

05-Feb-2023 02:06 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Renu

04-Feb-2023 06:33 PM

👍👍🌺

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