अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
राजू ने अभी तक चालीस बसंत देखे भी नही थे कि एक दिन उसके घर आने से पहले ही नियति ने उसके जीवन में एक ऐसा दुख लिख दिया जिसकी कल्पना शायद! उसने कभी की ना हो लेकिन एक बात को सोचकर आज वह अपने आप पर शर्मसार हो रहा था कि उसने अपनी पत्नी को कभी भी प्यार से गले तक नहीं लगाया था।
अक्सर देखा गया है कि किसी के उसके जीवन से जाने के बाद ही उसका महत्व मनुष्य जाति को होता है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी जो कोई भी काम करे तो उसमें उसे अपने स्वार्थ की चिंता अवश्य ही रहती है। राजू पैसे से ड्राइवर था, ड्राइवरी कर अच्छा - खासा कमा लेता था। ड्राइवरी के लाइन में आने से पहले तक तो सब कुछ ठीक ही था। राजू की पत्नी सुलेखा भले ही ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन अपने घर - परिवार को संभालना बखूबी जानती थी। अपने पति और छोटे-छोटे अपने चारों बच्चों को उसने उस वक्त भी संभाला था जब परिवार की स्थिति बिल्कुल ही दयनीय थी।
एक समय जब निराशा के भंवर में डूबकर राजू बिल्कुल हताश हो गया था, उस वक्त सुलेखा ही थी जिसने अपने पत्नी धर्म को निभाते हुए हर परिस्थिति में अपने पति राजू का साथ दिया और बहुत ही सलीके और बुद्धिमानी से वक्त के दिए हर थपेड़े को सहकर उसने उस भंवर से राजू को निकाला भी।
अपनी पत्नी की कही एक बात मान कर राजू ने भाड़े पर टैक्सी चलानी शुरू की और अपनी मेहनत से कुछ ही महीनों में इतना कमाने लगा कि तीन वक्त की रोटी परिवार के हर सदस्य की थाली में आने लगी। कुछ महीने पहले तक घर में बेकार खाट पर पड़ा रहने वाला राजू अब बस कुछ घंटों के लिए ही घर आता था, वो भी सोने और कभी- कभार खाने के लिए।
सुलेखा अपने पति में नित आए बदलाव को देख रही थी लेकिन उसे समझने में बहुत देर हो गई कि यह बदलाव उसके और उसके बच्चों के भविष्य के लिए नही है बल्कि राजू की इच्छाओं के लिए था। पैसे आने शुरू हुए तो राजू की इच्छाएं बढ़ने लगी। अधिकांश ड्राइवरों की भांति वह भी अब शराब के ठेके पर जाने लगा। शुरू में तो एक - दो ग्लास में ही वह लेट जाता लेकिन जैसे-जैसे शरीर को शराब सहने की लत लगी वैसे- वैसे उसकी शराब की ग्लासेज में बढ़ोतरी होने लगी।
धीरे-धीरे राजू अपनी पत्नी सुलेखा और बच्चों से दूर और शराब एवं वेश्याओं के करीब आने लगा था। सुलेखा इस बात को जान चुकी थी और उसने राजू को बहुत बार समझाने की कोशिश भी की थी लेकिन राजू हर बार यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेता था कि एक मैं ही नहीं हूॅं जो शराब और वेश्याओं के पास जाता हूॅं, मेरे जैसे बहुत सारे ड्राइवर और भी है जो ऐसा करते हैं और तो और तुम्हारी तरह किसी और की पत्नियां इतना चिल्लम- चिल्ली नहीं करती जितना तुम कर रही हो।
बढ़ते दिन के साथ सुलेखा ने अब अपने पति राजू को समझाना भी बंद कर दिया था क्योंकि अब राजू बातों का जवाब बातों से नहीं देता था बल्कि उसके हाथ भी अब सुलेखा पर उठने लगे थे। बच्चे भी उम्र के साथ बढ़ रहे थे, उन्हें भी इस बात का आभास हो रहा था कि उसके पिता उन सब के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे हैं।
दिन, महीने और साल बदलते रहे, चारो बच्चे भी अपनी यही नियति मानकर आगे बढ़ते रहे। दुनिया बदल रही थी, लोगों के विचार बदल रहे थे यहां तक की सबकी सोच भी बदल रही थी। कह सकते है कि देश और समाज में बदलाव की राह पर अग्रसर था लेकिन कुछ नहीं बदल रहा था तो राजू का व्यवहार और सुलेखा के जीवन में आता रोज तूफान।
कहते हैं ना कि जब मौन चुप्पी का आवरण ओढ़ कर सब कुछ अपने भीतर दबा लेता है तो एक वक्त ऐसा भी आता है जब वह तूफान बन कर सबके सामने प्रकट होता है। शांत स्वभाव वाली सुलेखा ने सबके जीवन में अचानक से तूफान ला दिया लेकिन जाने से पहले उसने खुद की जिंदगी को ताश के पत्ते की तरह बिखेर हुआ ही तो देखा था, जिसे राजू ने कभी समेटा नहीं था या यूं कहें कि समेटने की कभी कोशिश भी नहीं की थी।
सुलेखा के जाने के बाद कुछ ही दिनों में राजू को इस बात का एहसास हो चुका था कि अब पहले वाला उसका जीवन नहीं रहा, जहां वह अपने पर किए गए हर सवाल का जवाब मारपीट और बेतुकी बातों से दे देता था। चारों बेटों की अपनी जिंदगी थी और वें बचपन से ही अपने पिता का व्यवहार देख रहे थे इसीलिए अपने पिता से उन चारों को कोई खास लगाव था नहीं।
कुछ सालों बाद राजू अपने घर में एकदम अकेला सुलेखा की तस्वीर को हाथ में लिए निढ़ाल बैठा यही सोच रहा था कि काश! समय रहते यदि मैं अपनी पत्नी की बातों को मान लेता तो मुझे यह दिन नहीं देखने पड़ते। उसकी ऑंखों से बहते ऑंसू और होठों की बुदबुदाहट सिर्फ इसी तरफ इशारा कर रहे थे कि "अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।"
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗💞💓
# मुहावरों की दुनिया
डॉ. रामबली मिश्र
05-Feb-2023 09:41 PM
शानदार प्रस्तुति 👌
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Varsha_Upadhyay
05-Feb-2023 06:50 PM
Nice 👍🏼
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प्रिशा
04-Feb-2023 10:56 PM
Nice post
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