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पावस

पावस
       (पावस)
होता बड़ा है दिलकश,बरसात का मौसम,
पायल की छमा-छम,लगे बरसात झमा-झम।।

माटी की सोंधी खुशबू, की बात क्या करें,
खुशबू के घर में जैसे,छा जाता है मातम।।

प्यासी धरा प्रफुल्लित, भग जाती गर्मियाँ,
निरख प्रवाह जल का,किसान भूले ग़म।।

चारो तरफ़ हरीतिमा,छा जाती खुशनुमा,
धानी चुनर में धरती सज जाती चमाचम।।

संगीत-गीत पावस,लेता है दिल चुरा,
लगता है बजने मीठा,ये झींगुंरी सरगम।।

झूले से सज हैं जाती,वृक्षों की टहनियाँ,
सब झूलते हैं झूला,गा कजरी मनोरम।।

मोरों के भाव नर्तन,लख मोहिनी अदा,
बादल पिघल के करते,सूखी धरा को नम।।

बैठी हुई निज कक्ष में,मायूस नायिका,
प्रियतम को दे संदेश,मेघों से हो विनम्र।।

बरसात पे ही होती,आश्रित ये जिंदगी,
पावस ही करती दाना,-पानी का  उपक्रम।।
                ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                    9919446372

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6 Comments

अदिति झा

17-Feb-2023 11:24 AM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

09-Feb-2023 08:08 PM

बहुत खूब

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