आ बैल मुझे मार
" अरे सुधीर! तुमने मुझे बताया नहीं। आज जब मैं ऑफिस गया तब मुझे मालूम चला कि कल रास्ते में ऑफिस से घर लौटते वक्त तुम्हारे साथ ये हादसा हो गया था, मैंने ऊपर - ऊपर से तो कुछ बातें सुनी है लेकिन अब तुम मुझे बताओ कि तुम्हारी यह हालत कैसे हुई? देखने से तो लग नहीं रहा कि तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ है, मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।" स्नेहा ने अपनी ऑंखों में उभर कर दिख रही चिंता की लकीर के साथ अपने मंगेतर संजय से पूछा।
" हाॅं बेटा! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है कि यह संजय झूठ बोल रहा है। बोलने को तो सबको यही बोल रहा है कि उसकी बाइक फिसल गई थी और यह सड़क पर गिर पड़ा जिसके कारण उसकी यह हालत हुई है लेकिन मुझे तो यही लग रहा है कि यह किसी से फिर से लड़ कर आया है।" संजय कुछ बोलता इससे पहले ही उसकी माॅं ने स्नेहा के पास आते हुए कहा।
" माॅं! आपको हर वक्त यह क्यों लगता है कि मैं आपसे झूठ बोल रहा हूॅं? आप लोग मेरी बात पर यकीन तो कीजिए लेकिन नहीं, खुद तो मुझे कल रात से डांट ही रही है, अब मुझे मेरी मंगेतर से भी डांट खिलवाकर ही मानेंगी आप।" मुस्कुराते हुए संजय ने पहले अपनी माॅं की तरफ देखा और उसके बाद अपनी मंगेतर स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा।
" क्यों नहीं डांट खिलवाऊंगी मैं? मैं स्नेहा से यह कहती ही रहती हूॅं कि अब मैंने अपने नालायक बेटे को बहुत संभाल लिया, इसकी हरकतें अब मुझसे संभलती नहीं है इसलिए अब तुम ही इसे संभालो, डॉंटो, मारो जो भी करना है करो लेकिन इसे सुधार दो।" संजय की माॅं ने भी प्यार से स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा।
" आप इकलौती ऐसी मां होंगी जो अपने बेटे को अपनी होने वाली बहू से डांट और मार खिलवाना चाहती होंगी। इस दुनिया में ऐसी माये तो मैंने बहुत देखी थी जो अपने बेटे की हर गलती पर पर्दा डालते हुए उसे कभी भी किसी बात के लिए गुनहगार नहीं मानती हैं, आज पहली बार ऐसी माॅं देख रहा हूॅं जो अपने बेटे को ही हर बार कटघरे में खड़ा कर देती है और तो और अपने बेटे की सफाई में कुछ सुनती भी नहीं है और खुद ही जज बनकर अपनी बहू के पक्ष में फैसला सुना देती है।" संजय ने बनावटी गुस्सा अपने चेहरे पर लाने की कोशिश करते हुए कहा।
" अच्छा अच्छा ठीक है लेकिन ये भी तो सोच कि तेरे जैसे नालायक बेटे के लिए इतनी अच्छी और समझदार पत्नी तो मैंने ही ढूंढ कर दी है, ऐसे में मैं अपनी बहू को बेटी बनाकर घर ला रही हूॅं और उसे अपने घर में बहु नहीं बल्कि बेटी का स्थान दे रही हूॅं तो तेरे पेट में दर्द क्यों हो रहा है? तू मेरा नालायक बेटा था और हमेशा ही रहेगा, यह सच्चाई बदलने की उम्मीद तो इस जीवन में बिल्कुल भी नहीं है।" संजय की माॅं ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।
" माते श्री! हमेशा की तरह मैं हारा और आप जीती। अब तो आप खुश है ना, इसी खुशी में अस्पताल के इस कमरे के बाहर की हवा आप खा ले और हम होने वाले पति पत्नी को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दें, आपकी बहुत कृपा होगी हम पर।" हाथ जोड़ते हुए संजय ने अपनी माॅं की तरफ देख कर कहा।
"अरे! मैं तो जा ही रही थी लेकिन तुम दोनों की बातें सुनी तो मुझसे रहा नहीं गया । अब मैं जाती हूॅं, तुम दोनों बातें करो और हाॅं जब बातें खत्म हो जाए तो मुझे एक कॉल कर देना, मैं वापस आ जाऊंगी।" मुस्कुराते हुए संजय की माॅं ने कहा और कमलेश से वापस निकल गई।
" यह माॅं क्या कह रही थी? तुमने सचमुच में फिर से किसी से लड़ाई की है क्या ? तुम्हारे चेहरे पर उभर आए जख्म तो यही कह रहे है संजू।" स्नेहा ने संजय के बिस्तर के पास रखी कुर्सी पर बैठते हुए उससे पूछा।
" तुम भी माॅं की बात पर ही यकीन कर रही हो। माना कि बचपन से ही मेरा स्वभाव गुस्सैल रहा है लेकिन तुम्हारी मेरी जिंदगी में आने के बाद तुम्हारे कहेनुसार अपने आप को मैंने संयम कर लिया है। ऐसा नहीं है कि मुझे गुस्सा नहीं आता, मुझे गुस्सा आता है लेकिन जैसे ही मुझे गुस्सा आता है, गुस्सा आने के बाद ठंडा पानी पीता हूॅं और ऑंखें बंद कर अपने आप को संयमित करने की कला अब मैं जान चुका हूॅॅं।" संजय ने स्नेहा के दोनों हाथों को अपने दोनों हाथों के बीच में रखने के बाद कहा।
" फिर तुम्हारी ये हालत कैसी हुई मैं समझ नहीं पा रही हूॅं?" स्नेहा ने चिंतित स्वर में संजय से पूछा।
" रोज की तरह ऑफिस से निकलकर मैं अपनी बाइक से घर जा रहा था। रास्ते में अंबारा चौक के पास जैसे ही मैं आया वहां पर भीड़ देखकर मैंने अपनी बाइक रोक दी और वहां क्या हो रहा है यह देखने के लिए उस भीड़ की तरफ बढ़ा। पास जाकर देखा तो दो लड़के आपस में लड़ रहे थे, यहां तक कि दोनों ने एक - दूसरे को लहूलुहान भी कर दिया था। भीड़ में से कोई कुछ नहीं बोल रहा था बहुत लोग तो वीडियो बनाने और उस वीडियो को वायरल करने में ही लगे थे। मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उन्हें छुङ़ाने की कोशिश की तो दोनों मेरे ऊपर ही झपट पड़े। वह दोनों दो थे और मैं अकेला, वैसे भी माॅं ने और तुमने लड़ाई - झगड़ा करने के लिए मना किया हुआ है इसीलिए मैं चुप रहा, मैंने उन पर हाथ नहीं उठाया, उसके बाद उन दोनों ने मेरी यह हालत कर दी। मेरी खुशकिस्मती यह रही कि उसी समय भीड़ देखकर ट्रैफिक पुलिस का एक सिपाही वहां आ पहुंचा और उसने उन दोनों लड़को से मुझे छुड़वाया और मुझे यहां अस्पताल में भर्ती करवाने में मेरी मदद की। स्नेहा! मुझे तो अब यही लग रहा है कि
आजकल किसी के झगड़े में बोलना 'आ बैल मुझे मार' की तरह हो गया है। यदि सबके साथ ऐसा होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब कोई भी किसी के झगड़े में पड़ना नहीं चाहेगा क्योंकि वहां पर उसे अपनी जान का भी तो खतरा रहेगा।" संजय ने कल शाम की सच्चाई स्नेहा को सुनाते हुए कहा।
" हाॅं यह बात तो है लेकिन क्या यही सोचकर हम अपनी इंसानियत भूल जाए, ऐसा भी तो करना सही नही है ना संजू। तुमने जो किया बहुत अच्छा किया। दुख सिर्फ इस बात का है कि तुम्हें उस अच्छाई का सही परिणाम नहीं मिला लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब अच्छाई का परिणाम भी अच्छा ही होगा।" स्नेहा ने समझाते हुए संजय से कहा।
दरवाजे के बाहर सच्चाई जानने के इरादे से खड़ी संजय की माॅं को अब अपने बेटे संजय के किए पर गर्व हो रहा था। अपने बेटे को बदलते देखकर उसकी ऑंखों से ऑंसू बह निकले जिसे उसने पोंछा नहीं बल्कि गिरने दिया क्योंकि यह खुशी और गर्व के ऑंसू थे।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗💞💗
# मुहावरों की दुनिया प्रतियोगिता
अदिति झा
07-Feb-2023 11:48 PM
Nice 👌
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
07-Feb-2023 08:21 PM
👏👍🏼
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