सूखे अधरों पर हम आओ मुस्कानो के फूल खिलाएं ..... ---------------------------------------------------
.....सूखे अधरों पर हम आओ मुस्कानो के फूल खिलाएं .....
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मानव तन है दिया ईश ने मानवता भी तनिक दिखाएं,
सूखे अधरों पर हम आओ,मुस्कानो के फूल खिलाएं।
हम दीन-दुखी,निर्बल पिछड़ों के बने सहायक थीरज दें,
रोती उनकी आंखों के हम आंसूं भी कुछ सुखा पाएं।
दुनिया मे दुख ही दुख छाया, सुख-शान्ति कहां अब मिलती है,
पर दीन-दुखी की सेवा से मन को शीतलता मिलती है।
गिर पड़े अगर कोई राहों मे उस पर न हंसेगा अब कोई,
आगे बढ़ उठा कर उसको हम अपने गले लगायेंगे।
निर्धन बालक जो पढ़ न पाये उसको भी हम अपनायेंगे,
दे कर स्कूल की फ़ीस भी हम पुस्तक और ड्रैस मंगायेंगे।
सिर्फ एक ही बालक अपना लें हम तो हर बालक पढ़ जायेगा,
अशिक्षित नहीं रहेगा कोई भारत शिक्षित कहलायेगा।
सरकारें भी हैं बनी सहायक पर क्या समाज का कर्तव्य नहीं,
सूखे अधरों पर मुस्कान खिलाना क्या ये अपना दायित्व नहीं।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़
Gunjan Kamal
09-Feb-2023 07:59 PM
बहुत खूब
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डॉ. रामबली मिश्र
09-Feb-2023 09:39 AM
शानदार
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अदिति झा
07-Feb-2023 11:39 PM
Nice 👌
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