Sangeeta singh

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वो खुली खिड़की

         मोहनीश की गुड़गांव में नई नई नौकरी लगी थी।शहर में अपना कोई सगा संबंधी नहीं था,इसलिए वो कुछ दिन कंपनी की तरफ से उसे  गेस्ट हाउस में रुकने का इंतजाम कराया गया  ,जब तक की कोई फ्लैट किराए का न मिल जाए।
7 दिनों बाद उसकी ऑफिस में ज्वाइनिंग थी। रहने की समस्या बहुत बड़ी थी ,इसीलिए उसने ब्रोकर का सहारा लिया जिससे जल्दी से जल्दी उसे मकान मिल जाए तो वह भी निश्चिंत हो नौकरी में मन लगा पाए।
          आखिर उसकी मेहनत रंग लाई ,4 दिन बाद ब्रोकर ने फ्लैट दिखाने के लिए फोन किया।
मोहनीश ब्रोकर के साथ फ्लैट देखने गया।
2 बेड रूम का फ्लैट था ,लोकेशन भी सही लगी ,बातों बातों में पता चला कि ब्रोकर भी उसके ही शहर का था ,तो एक अच्छी बॉन्डिंग हो गई ,कहते हैं ना जब अनजान शहर में कोई अपने शहर का मिल जाए तो बड़ा अपना अपना  सा लगता है।
ऐसा ही मोहनीश को ब्रोकर से मिल कर लगा। ब्रोकर विजय 3 साल पहले ही यहां आया था ,प्रॉपर्टी बिजनेस में उसने कम समय में अच्छी कमाई कर ली थी।
अगले दिन मोहनीश ने उसे एडवांस दे दिया ,और कुछ  सामान फ्लैट पर रख दिया।
और बाकी का सामान लेने घर चला गया।
मोहनीश की मां ने आकर सामान सही से लगवा दिया,और फिर वापस लौट गई।
मोहनीश ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली। ऑफिस में सभी सहकर्मी काफी अच्छे स्वभाव के थे ,उनके साथ काम कर मोहनीश खुश था।
उसके ऑफिस की स्नेहा उसे पसंद करने लगी थी।मोहनीश भी एक दोस्त के नाते उसे पसंद करता था,कभी कभी वो घर आकर मोहनीश के लिए खाना भी बना दिया करती ।
सुबह मोहनीश को जल्दी रहती तो वह नाश्ता भी नहीं करता ,और ऑफिस पहुंच जाता।
एक दिन स्नेहा ने उसे कैंटीन में ब्रेकफास्ट करते देखा तब से वो रोज ब्रेकफास्ट और ज्यादा लंच ले आती थी।
ऑफिस में सब स्नेहा का नाम लेकर उसे चिढ़ाते ,तो वो झेंप जाता और कहता ऐसा कुछ नहीं है।
मोहनीश ने उसके बॉस भी खुश थे ,उसने सेल्स में  कंपनी को काफी लाभ पहुंचाया था।
इधर दो दिनों ने गर्म ठंडे के कारण उसे जुकाम बुखार आ गया,जिसके कारण उसने ऑफिस से छुट्टी ले ली।
उस दिन दवा खाकर वह दिन में बेसुध सो गया,जब नींद खुली तो रात के 9 बज गए थे।
भूख लग रही थी ,किचन में जाकर देखा तो स्नेहा ने उसके लिए परांठे  और सूखी सब्जी बना कर रखे थे,स्नेहा के पास चाभी थी ,वह हाल खबर लेने आई थी , मोहनीश को बेसुध सोता देखा तो खाना बना कर चली गई थी।
बुखार उतरा था,मोहनीश ने जल्दी जल्दी एक परांठा और सब्जी  खाया।
उसे अब नींद नहीं आ रही थी ,तो उसने ऑफिस का कुछ काम निपटाने  को सोचा ,वह लैपटॉप लेकर बैठ गया।
काम करते करते करीब रात के 1 बज गए,  उसे जोरों की चाय की तलब लगने लगी तब उसने सोचा चलो एक कप चाय ही पी लूं । वह उठा ,अचानक उसकी नजर सामने वाली खिड़की पर पड़ी ।
खिड़की खुली थी ,वहां एक सुंदर सी लड़की खड़ी बाहर आसमान को   निहार रही थी ।मोहनीश मंत्रमुग्ध सा वहीं खड़ा होकर उसे देखने लगा,वो भूल गया कि वह चाय बनाने के लिए उठा है।
लड़की की नजर उसकी तरफ गई ,नजरें मिली ,उसने शरमा कर अपनी खिड़की बंद कर दी।
मोहनीश ने  कभी इतनी सुंदर  लड़की नहीं देखी थी,वह टकटकी लगा कर लगातार बंद खिड़की की ओर निहार रहा था।
  थोड़ी देर बाद एक बार  फिर से खिड़की खुली,लड़की ने बाहर झांका शायद उसे यकीन था कि मोहनीश खिड़की की ओर जरूर देख रहा होगा और ऐसा ही हुआ  ,उसने मोहनीश को खिड़की की  ओर देखता हुआ  देखा तो हौले से मुस्कुरा कर फिर से खिड़की बंद कर दी।
उसकी मुस्कुराहट में एक कशिश थी।

मोहनीश चाय भूल चुका था ,खिड़की खुला छोड़ वह बिस्तर पर लेट गया,और उस अनजान लड़की के बारे में सोचता रहा,।
उस समय उसके जेहन में एक गाना याद आ गया और वह गुनगुनाने लगा_
*"एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा
जैसे खिलता गुलाब
जैसे शायर का ख्वाब
जैसे उजली किरण 
जैसे वन में हिरण......"*
पता नहीं  कब उसकी  आंख लग गई ,अलार्म की कर्कश आवाज सुन वह नींद से जागा।
आज तबियत ठीक थी ,लेकिन थोड़ा सर भारी था।
उसने अपनी काम वाली से अदरक वाली चाय बनवाई क्योंकि आज भी उसने छुट्टी ले रखी थी ,और चाय लेकर अपने बेडरूम की खिड़की से सामने वाली खिड़की निहारने लगा।वो खिड़की बंद ही रही।दिन में कई बार उसने उसने खिड़की की ओर निहारा लेकिन खिड़की बंद ही मिली।
वह उस लड़की का सुंदर मुखड़ा भूल ही नहीं पा रहा था।
शाम को सभी दोस्त  स्नेहा के साथ  उसका हाल चाल लेने घर पर आये,थोड़ी देर बात करने के बाद  उन सबने बाहर खाने का प्रोग्राम  बना लिया।
सब एक बड़े रेस्तरां में गये,जिसमें बार भी था,डांसर डांस कर रही थीं।
तभी मोहनीश की नजर  सुंदर लड़की पर  गई चेहरा पहचाना सा लग रहा था गौर से देखा तो ये तो वही लड़की है जो  उसके सामने वाले फ्लैट में रहती थी।
क्या?ये यहां बार डांसर है ,मोहनीश मन ही मन बुदबुदाया।
रात ज्यादा हो गई थी , स्नेहा पहले ही डिनर के बाद  घर जा चुकी थी ,इसीलिए अब दोस्तों को घर जाने की जल्दी नहीं थी।
शेखर बीयर लेकर उस लड़की के पास पहुंच गया।
लड़की असहज लगने लगी।मोहनीश ने देखा शायद   शेखर कोई बत्तमीजी न कर दे इसलिए वह  शेखर को  सहारा देकर ले आया और कुर्सी पर बिठा दिया।
काफी देर बाद मस्ती करने के बाद 
सभी अपने अपने घर वापस  लौटने को निकल लिए ।बार के बंद होने का समय हो गया था।
वह लड़की भी ड्रेस चेंज करके बाहर आ गई ।

,मोहनीश सबके जाने के बाद  अपनी कार में बैठा उस लड़की का इंतजार कर रहा था ।
तभी उसने उसे आते देखा ।
हिम्मत जुटाते उसने कार से उतर कर शालीनता से पूछा 
_एक्सक्यूज मी ,क्या मैं आपको घर छोड़ दूं।
लड़की ने कहा _नहीं , मैं चली जाऊंगी ।
अरे मैं उधर ही तो जा रहा हूं ,आइए  आपको घर छोड़ दूंगा,कहां रात को सड़क पर साधन का इंतजार करेंगी।
अंत में वह तैयार हो गई।उसने काले रंग का गाउन पहना हुआ था,उसका सफेद जिस्म ,संगमरमर की मूरत की तरह तराशा हुआ था,सुंदरता में देवलोक की अप्सरा को भी जैसे पछाड़ दे।
वह आकर कार में  पिछली सीट पर बैठ गई।
मोहनीश ने मजाक में कहा _सॉरी आपका नाम क्या है,।
जी कविता_उस लड़की ने कहा।
कविता जी आप अगर आगे मेरी सीट के बगल में बैठेंगी तो मुझे ड्राइवर वाली फीलिंग कम आएगी।
कविता हंस पड़ी _उसने कहा ,बड़े दिलचस्प है ,कहते हुए कविता बगल की सीट पर आ बैठी।
मोहनीश को लगा ,आज की रात ना खत्म हो न ये सफर।
उस समय एफएम में पुराने गाने आ रहे थे _
जो मोहनीश और इस स्थिति के लिए सटीक था
तुम भी चलो ,हम भी चलें
चलती रहे जिंदगी।
मोहनीश कनखियों से कविता की ओर निहार लेता।वह शांत बैठी थी।
आखिर फिर से मोहनीश बोल उठा ,आपने मेरा नाम नहीं पूछा। मैं अभी 6 महीने पहले ही यहां आया हूं।
आपका नाम क्या है? _सॉरी मैं पूछना भूल गई थी।
मोहनीश , मोहनीश है मेरा नाम ।
आप यहीं बार में डांसर हैं?_मोहनीश ने कहा।
जी_कविता ने संक्षिप्त जवाब दिया।
आप बहुत सुंदर हैं कविता जी ,शायर की शायरी ,कवि की कविता है आप _पता नहीं क्या क्या बडबडा गया मोहनीश।
घर आ गया,कविता ने कहा।
हां.. हां._ हकला कर मोहनीश बोला।
बस इतना ही साथ था _खुद में बड़बड़ाया।
उसकी बड़बड़ाहट कविता ने सुन ली,वह मुस्कुराने लगी।
वैसे मैं अकेली ही रहती हूं ,कभी जरूरत होगी तो आपको याद कर लूंगी।
ये सुन मोहनीश को तो जैसे जन्नत मिल गई ।उसका बुझा चेहरा ,खुशी से खिल गया।
अगले दिन ऑफिस जाना था,स्नेहा उसे देख खुश हो गई _आ गए मोहनीश उसने उसके लिए फूलों का गुलदस्ता बनवाया था ,उसे दिया।
मोहनीश ने स्नेहा से गुलदस्ता लिया ,और दोस्तों से बात कर अपने केबिन में चला गया।
उसे स्नेहा का इस तरह से अपने आसपास मंडराना अच्छा नहीं लग रहा था,उसे तो हूर की परी पाने की ख्वाहिश थी,उसे अब हमेशा कविता का ही नशा रहता।

स्नेहा से वह कटने लगा ,उसने एक खाना बनाने वाली रख ली,जिससे स्नेहा का उसके लिए टिफिन लाना,खाना बनाना बंद हो जाए।
शाम को आते ही ,खिड़की खोल कर बैठ जाता , ताकि रात को अपने चांद का दीदार कर सके।
कई कई रात दोनों खिड़की से एक दूसरे को देखते ,और अगले दिन मोहनीश की नींद नहीं पूरी होती वह ऑफिस में ऊंघता रहता।

एक दो दिन से कविता उसे खिड़की पर नहीं दिखी तो उसने कविता के घर जाने का फैसला किया।

वह 10 बजे उसके घर गया,दरवाजा खुला था ,वह कविता कविता पुकारता अंदर के कमरे में दाखिल हो गया उसके घर की  दीवारों पर अजीब अजीब सी पेंटिंग लगी थीं।घर पुराने ढंग से सजाया हुआ था।
वह आगे बढ़ता कविता के बेडरूम  की ओर बढ़ा कविता बिस्तर पर लेटी थी,उसने एक झीनी सी नाइटी पहनी थी,मोहनीश उसे कुछ देर तक देखता रह गया।
उसे देखता देख कविता ने पूछा _ आप कैसे?
जी...जी "हकला कर मोहनीश ने कहा जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो"उसने कहा दो दिन से आप खिड़की पर दिखी नहीं,इसलिए आपका हाल खबर लेने आपके घर चला आया ,आप ठीक तो हैं?
जी थोड़ी कमजोरी लग रही थी ,और सर भी फटा जा रहा था।
ओह .,अभी तो मेडिकल स्टोर भी बंद हो गया होगा ,अगर आपको दिक्कत न हो तो मैं आपका सर दबा दूं।
कविता ने हां में सर हिला दिया।
वह कविता के सिरहाने बैठ गया।
वह हौले हौले उसके सर को दबाने लगा,धीरे धीरे उसके गेसुओं से खेलने लगा।
कविता को भी  बहुत अच्छा लग रहा था,उसने कहा अगर बुरा न माने तो क्या  मेरे बालों में भी  तेल लगा देंगे,वहां खिड़की पर रखा है।
जी कहता हुआ मोहनीश यंत्रवत उठा ,और तेल की शीशी खोल उसके सर पर तेल रखने लगा।
उस तेल की  भीनी भीनी खुशबू मोहनीश को मदमस्त बना रही थी।
थोड़ी देर बाद कविता ने कहा _मोहनीश जी बत्ती बुझा दीजिए,आंखों में ये रोशनी चुभ रही है ।मोहनीश ने बत्ती बंद कर दी।
अचानक कविता ने मोहनीश को अपनी बाहों में जकड़ लिया,और चूमने लगी ।मोहनीश एक बार समझ नहीं पाया कि शांत दिखने वाली लड़की अचानक इतनी जंगली की तरह से उसे कैसे चूम रही है ,लेकिन मोहनीश भी बेकाबू था उसके हुस्न का ,वह भी वासना की आंधी में बहने लगा।
फिर दोनों निढाल होकर सो गए।
अचानक सुबह 4 बजे मोहनीश की नींद खुली वह धीरे से उठा ,उसने देखा कविता बेतरतीब सोई थी ,उसके चेहरे पर मासूमियत गायब थी ,उसने उसके सर को चूमा और अपने कपड़े सही किए और दरवाजा खोल अपने फ्लैट में चला गया।
अब तो रोज रात को कविता ,मोहनीश के फ्लैट में आ जाती ,दोनों ही अपनी शारीरिक  भूख मिटाते।
मोहनीश पिछले 15 दिनों में बहुत कमजोर लगने लगा था,उसकी आंखों के नीचे काले धब्बे दिखने लगे थे।
काम करता तो थक जाता ,बॉस उसकी परफॉर्मेंस से खुश नहीं थे,एक दो बार उसे डांट भी लगी।
स्नेहा उसे देखकर परेशान हो गई ,उसने पूछा तो मोहनीश ने बताया कि रात नींद नहीं आती इसीलिए थकावट और आंखों के नीचे काले गड्ढे बन गए हैं।
सभी दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था मोहनीश सबने अपनी अपनी राय दी ,किसी ने कहा डॉक्टर को दिखा लो,कोई कहने लगा थोड़े दिन रेस्ट कर लो।
स्नेहा ने मोहनीश की मां को फोन किया _आंटी पता नहीं मोहनीश को क्या हो गया है ,दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा है।
मोहनीश की मां  खबर पाकर दौड़ी दौड़ी चली आई ।
मां ने मोहनीश को देखा तो उनकी आंखों में आंसू आ गए।
उन्होंने कहा क्या हाल बना लिया है बेटे तूने।
मोहनीश कुछ बोला नहीं कमरे में बैठा खिड़की की ओर एकटक निहार रहा था ।
उसकी मां ने कहा उधर खिड़की पर किसे निहार रहा है।
मां एक बात बताऊं मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं और शादी करना चाहता हूं।
कौन है वो लड़की ,उसके मम्मी पापा कहां रहते हैं,क्या करती है,सवालों की झड़ी लगा दी ,मोहनीश की मां ने।
वो सामने वाले घर में रहती है,वह अनाथ है ,बार में डांसर है।
अच्छा,...उसका बायोडाटा सुन मां को अच्छा तो नहीं लगा ,लेकिन उन्होंने कहा, मैं उससे पहले मिलूंगी फिर फैसला करूंगी।
ठीक है।मोहनीश खुश हो गया।
10 बजने वाले थे ,शायद वो घर आ गई होगी यही सोच ,मोहनीश उसके घर जाने के लिए कपड़े बदलने लगा।मोहनीश की मां ने देखा मोहनीश की पीठ पर नाखूनों के निशान,उसके सीने में नाखून से खरोंचा हुआ था।ये सामान्य नाखूनों के निशान नहीं थे ,गर्दन के पास भी चोट के निशान थे ।वह घबरा गई।
मोहनीश ,कविता के घर चला गया,कविता तैयार होकर मोहनीश की मां से मिलने आई।
जिस कविता को देख मोहनीश मर मिटा था,वही  मोहनीश की मां को अजीब लगी।
खैर मोहनीश की मां ने अच्छे से बात की,वो चली गई।
अगले दिन मोहनीश के ऑफिस जाने के बाद,मोहनीश की मां कविता के घर कविता से मिलने गई ,बाहर ताला लगा था।वह लौट आई ,फिर  उन्होंने कुछ देर स्नेहा से फोन पर मोहनीश और कविता के बारे में बात की ।

शाम हुई तो समय बिताने के लिए  पार्क में चली गईं , महिलाएं अपने बच्चो को लेकर पार्क में आईं थी ।मोहनीश की मां को देख उन्होंने पूछा आंटी आप नई आई हैं क्या? उन्होंने कहा ,मेरा बेटा यहां 116 नंबर फ्लैट में रहता है।
वे सब एक साथ चौंकी,आपस में कानाफूसी करने लगीं ,मोहनीश की मां चौकन्नी हो गई।
क्या हुआ बेटा? तुम सभी चौंक क्यों गईं।
कुछ नहीं आंटी उन्होंने एक स्वर में कहा।
मोहनीश की मां ने उनसे पूछा सामने के फ्लैट में कोई कविता रहती है क्या?
उन सभी के चेहरे पर हवाई उड़ने लगी। वे बेंच से उठकर अपने अपने बच्चों को पुकारने लगीं जो उस समय खेलने में व्यस्त थे 
मोहनीश की मां को उन सबका व्यवहार खटका,फिर वो उठ कर वॉचमैन के पास चली गईं।
उन्होंने फ्लैट नंबर 104 में रहने वाली कविता के बारे में पूछा ,वॉचमैन ने जो बताया उसे सुन वो बेहोश होते होते बचीं।
मोहनीश जब ऑफिस से लौटा तो, मां ने एक रट लगाई ,अब तू यहां नहीं रहेगा कुछ दिन की छुट्टी लेकर घर चल।
पर मां.....क्या हुआ ।
कुछ नहीं बस तू घर चल।

मोहनीश कुछ कहता उससे पहले कविता उनके घर आ गई ।

  अजीब नज़रों से मोहनीश की मां को देखा ,उसकी मां डर गई।
उसने मोहनीश से कहा ,प्लीज मेरे घर की  एक लाइट फ्यूज हो गई है ,दूसरी बदल दो ना।
मोहनीश चला गया,उसकी मां थर थर कांप रही थी।
रात के 1 बजे मोहनीश लौटा।
अगले दिन मोहनीश के जाने के बाद ,मोहनीश की मां ने स्नेहा को फोन कर घर बुला लिया ,और वॉचमैन ने एक तांत्रिक का पता दिया था ,उसके पास दोनों गईं।
तांत्रिक ने बताया तुम्हारा लड़का चुड़ैल  के चंगुल में फंस गया है, उस फ्लैट में कविता नाम की लड़की  रहती थी ,जिसे  उसके प्रेमी ने धोखा दिया था और इसी  कारण उसने फांसी लगा ली थी।वह अधूरी वासना से पीड़ित थी ।जवान मर्दों को वह अपने खूबसूरती से वस में करती है ,रात गुजारती है ,और उनका खून पीकर अपनी ताकत बढ़ाती है।अब तुम्हारा लड़का सिर्फ 10 दिन का ही मेहमान है।
बाबा कुछ तो करिए ,मेरा इकलौता लड़का है ,मोहनीश की मां गिड़गिड़ाने लगी।

वॉचमैन के पास उस घर की चाभी होगी ,क्योंकि पुलिस केस खत्म हो चुका है ,कोई भी ब्रोकर उसे किसी अनजान व्यक्ति को किराए में दे सकता है ।आप उससे चाभी लो।
और उसके घर में जाकर मेरे इस भस्म से सारे कमरे में लाइन खींच दो।
पर बाबा वो कमरे में होगी_स्नेहा बोली।
ऐसी आत्माएं अंधेरे में रहना पसंद करती हैं,दिन में सूरज की रोशनी उन्हें जलाती हैं।तुम जाकर खिड़की,परदे सब खोल देना।
लहसुन की कलियां पूरे घर में बिखेर देना।
वो अगर प्रवेश करने की कोशिश करेगी तो नहीं कर पाएगी जल जाएगी,और माता जी ये ताबीज अपने बेटे के गले में बांध देना ,और भस्म की एक लकीर अपने  घर के दरवाजे पर भी खींच देना ।

मोहनीश की मां और स्नेहा ने ऐसा ही किया ।मोहनीश जब शाम को आया तो मां ने ताबीज उसके गले में पहना दिया और कसम दी कि तू किसी भी कीमत पर  इस ताबीज को नहीं उतारेगा,क्योंकि वो जानती थी कि किसी भी तरह का नाटक फैला कर वह मोहनीश के पास आने की कोशिश करेगी ।
हुआ भी यही , कविता दरवाजे के बाहर आकर रोने लगी ,मोहनीश प्लीज  चलो  न बाहर घूम आते हैं मेरा दम घुट रहा है।
मोहनीश कुछ कहता उससे पहले मोहनीश की 
मां ने उसे कहा _अंदर आ जाओ बेटी ,अंदर पैर रखते ही उसमे जलन होने लगती वो समझ गई थी, कि ये सब मोहनीश की मां का किया धरा है।
वह असली रूप में आ गई अत्यंत बदसूरत ,घिनौनी दिख रही थी।
मोहनीश डर गया _कौन हो तुम ?कविता कहां गई।
हा हा हा मैं ही हूं कविता ,आ आ ,बड़ा मजा आता है तेरा खून पीने में ।आजा मेरी प्यास बुझा दे ना,फिर रोने लगी।
तब तक मोहनीश की मां ने सारा बचा भस्म उसके ऊपर उंडेल दिया ,वह धू धू कर जलने लगी , अंत में धुवें के रूप में परिवर्तित हो गई।
इस तरह मोहनीश को उसकी मां और स्नेहा ने मौत के मुंह से बचा लिया।
मोहनीश की मां के कहने पर मोहनीश ने दूसरा फ्लैट ले लिए ,जहां कुछ दिन बाद स्नेहा से उसने शादी कर ली।
उसने तौबा कर ली,जो सुंदर दिखता है जरूरी नहीं वो सुंदर ही हो।

समाप्त
(रचना पूर्णतः काल्पनिक है )



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10 Comments

अदिति झा

09-Feb-2023 02:59 PM

Nice 👌

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Sangeeta singh

09-Feb-2023 04:31 PM

बहुत बहुत धन्यवाद जी

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Punam verma

09-Feb-2023 08:42 AM

Very nice

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Sangeeta singh

09-Feb-2023 04:31 PM

बहुत बहुत धन्यवाद।

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Abhinav ji

09-Feb-2023 07:54 AM

Very nice 👍

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Sangeeta singh

09-Feb-2023 07:59 AM

बहुत बहुत धन्यवाद

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