रक्षक (भाग : 14)
रक्षक भाग : 14
पिछले भाग आपने पढ़ा कि तमसा ब्रह्मांड के सबसे खतरनाक जीव 'सर्पितृल प्रजाति' को रक्षक के खिलाफ युद्ध करने ले आती है, यह सेना रक्षक और उसके साथियों के रोके नही रूक रही थी। रक्षक युद्ध
करता हुआ सर्पितृलों के बीच से गुजरकर तमसा तक पहुँचने की कोशिश करता है, पर इससे पहले वह तमसा के करीब भी पहुँच पाता किसी लम्बी पूँछ की समान आकृति ने उसके गले को जकड़ लिया। ये सामान्य सर्पितृलों से बहुत अधिक ताक़तवर प्रतीत हो रहा था। रक्षक अपनी कई कोशिशों के बावजूद भी उसके कैद से मुक्त नही हो पा रहा था। न ही कोई उसपर ध्यान दे रहा था, क्योंकि सब युद्ध में व्यस्त थे।
रक्षक अपने हाथों पर कवच की एक और मोटी परत तैयार कर उस जीव के पूँछ को अपने गले से छुड़ाने की कोशिश करता है, पर वह सफल नही हो पाता।
उस जीव ने बस एक हल्की सी झटकार लगाई और रक्षक उसके पूंछ से छूटकर, हवाओं में उड़ता हुआ दूर जा गिरा, तब वह जीव सामने आया वो सामान्य सर्पितृलों से अलग था उसके पाँच सिर और दो दुम थे, सामान्य सर्पितृलों से काफी लंबा तगड़ा, और पद एवं सम्मान में भी बड़ा प्रतीत हो रहा था क्योंकि सारे सर्पितृल उसे देखते ही उसे सम्मान दे रहे थे, परंतु युद्ध में होने के कारण कोई झुककर या अपने अन्य प्रकार से सम्मान नही दे सकता था।
"अगर मैं साधारण सैनिक लेकर तुमसे लड़ने आऊं, पहले ये हाल देखने के बाद भी वैसी ही गलती दोहराऊं ये मैं नही करती रक्षक! ये सर्पितृल अकेले ही तुझ जैसे कई को संभाल सकते हैं, अंधेरे के सेना के सबसे कुशल योद्धा हैं ये!" - तमसा, रक्षक को गिरा हुआ देखकर विजयी अट्हास करते हुए बोली।
रक्षक को ऐसी पटखनी कल के युद्ध मे नही मिली थी, वो हैरान था कि 'एक पूरी प्रजाति ही है जो undead से भी ताक़तवर है, या हो सकता है अंधेरे के पास ऐसी कई प्रजातियां हो। मुझे अचानक से क्रोध आना बंद हो गया, मैं विवेक से कार्य करने लगा, बहुत सी चीजें ऐसी हैं जो मैं समझ नही पा रहा हूँ, आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? रक्षक अपने मन में बस पिछले दो दिन के बारे में ही सोच रहा था। रह रहकर उसे काफी बातें सताये जा रही थी।
सोचते हुए वो उठ खड़ा हुआ, तभी वो पाँच सिर वाला सर्पितृल उसके सीने पर जोरदार उछाल मारकर कूद गया, रक्षक विचारों की दुनिया में खो जाने के कारण उससे बचने के लिए कुछ नही कर पाया और जमीन में धंसता हुआ सैकड़ो फ़ीट अंदर चला गया, इससे पहले रक्षक संभल पाता, उस सर्पितृल ने अपने दूसरी पूँछ से उसे बाहर निकालकर जमीन पर पटकने लगा जिससे वहां की जमीन में दरार पड़ने लगी, रक्षक के चेहरे पर पसीने से ज्यादा खून बह रहा था, वो हैरान था, इतना ताक़तवर होने के बाद भी बेबस होना कैसा लगता है। ये शायद उस वक़्त रक्षक से बेहतर कोई नही बता सकता था।
तमसा रक्षक के इस हाल पर अठ्ठाहस कर रही थी, बाकी सब अपनी अपनी पूरी ताक़त से अंधेरे के इन विचित्र योद्धाओं से जूँझ रहे थे, पर किसी के भी आसार जीतने के नज़र नही आ रहे थे, सूरज सर पर चढ़ रहा था। तापमान भी बहुत बढ़ रहा था। इस ग्रह का नीला सूर्य तेज़ी से दमक रहा था, पर इस नीले सूर्य से सर्पितृलों को कोई खास परेशानी नही थी, और अंश के इससे मिलने वाली ऊर्जा के प्रयोग से भी उनपर कोई खास असर नही पड़ रहा था।
रात भर के थके हुए, और अपने से शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वी से लगातार लड़ते हुए सभी की हालत पस्त हो चुकी थी, परन्तु लगातार दो दिन से लड़ने के बाद भी, उनकी हिम्मत जरा भी कमजोर नही हुई थी। आज यूनिक ही एकमात्र ऐसा था जिसने सर्पितृलों के एक बड़े बेड़े को निपटा दिया था, न जाने क्यों इन्हें रक्षक की जरूरत पड़ी, इनके पास ये पागल मशीन तो थी ही...।
"ये सर्पितृलों का राजा पंचभूत है रक्षक! हज़ारो साल से सोने के बाद आज जागृत हुआ है, और हाँ इसे मैंने नही जगाया, तुमने जगाया है… हाहाहा" - तमसा जोरदार अठ्ठाहस करते हुए बोली, जो अब अपने सवारी जीव क्रुक पर बैठकर, बुरी तरह लहू से लथपथ रक्षक के पास आ चुकी थी।
"ये तुम नही बताती तो भी जान ही जाता तमसा! पर इसे मैं क्यों जगाऊंगा? मैं तो इसकी पूरी प्रजाति से ही अपरिचित हूँ।" - रक्षक तमसा की बात सुनकर हैरान था।
"क्योंकि पंचभूत केवल तभी जागता है जब उसकी प्रजा पर संकट आये, यहां तक कि ये तमस से भी परे हैं। उसका आदेश मानना न मानना इसकी मर्ज़ी है, इसे दिया आदेश पूरा करने के लिए कोई बाध्य नही कर सकता।" तमसा पंचभूत के बारे में बताने लगी। "इसे तभी जगाया जा सकता है जब इसकी प्रजा भीषण संकट में हो, और हम स्वयं ऐसा करके इसे अपना शत्रु नही बना सकते थे, इसलिए उसके योद्धाओं पर खतरा बनकर तुमने उसे जगाया है, तुमने अपनी मौत बुलाई है हाहाहाहा….." - तमसा अपनी योजना सफल होने की खुशी में हँसती जा रही थी।
और रक्षक…
रक्षक इस वक़्त पंचभूत के हाथों बेबस था। उसका मस्तिष्क भी केंद्रित नही हो पा रहा था जिससे वो उर्जावार कर सकें, अब रक्षक को सब छिन्न भिन्न नज़र आ रहा था, उसे बस रक्षक नाम एक झूठी पदवी लग रही थी। हर बार वो मरने की कगार पर होता है, वो किसी और के लिए रक्षक कैसे बन सकता है भला! पर हर मुसीबत के साथ उसके पास उसमें, उसे रोकने की शक्ति भी आती है, क्या वो इसलिए रक्षक है कि खुद की रक्षा करें, नही! वो इसलिए रक्षक है ताकि वो दुसरो की रक्षा करे, इस दुनिया की, उजाले की और उनके उम्मीद की विश्वास की, जिन्होंने उसे रक्षक का नाम दिया है। वो नायक है, उसे लड़ना है, मुसीबत कितनी बड़ी है इससे फर्क नही पड़ता, फर्क इससे पड़ता है सामना करने वाले का जिगरा कितना बड़ा है, उसकी हिम्मत कितनी ज्यादा है और मैं रक्षक हूँ….!
रक्षक के मन के आत्मविश्वास की एक नई लहर उभरी, वो अब खुद को पहले से ज्यादा ताकतवर महसूस कर रहा था, वह जमीन से थोड़ा ऊपर हवा उठा, अपने दोनों हाथों में बी पॉवर को स्थानांतरित करने लगा। उसके दोनों हाथ अब दहकने लगे, अब रक्षक हवा में उड़ने लगा, रक्षक के साथ उसके गले पूँछ लपेटा हुआ पंचभूत भी हवा में आ गया, रक्षक अपने दोनों हाथों से दुम पकड़कर अपने गले से खींच दिया, इतनी तीव्र ऊष्मा के कारण पंचभूत को पीड़ा हुई, जिससे रक्षक उसके शिकंजे से छूट गया।
"बहुत हो गया तुम्हारा अंधेरे के बच्चे! अब मेरी बारी है।" कहता हुआ रक्षक अपना दांया हाथ पंचभूत के पेट मे घुसेड़ देता है, पंचभूत दर्द से बौखला जाता है पर थोड़ी ही देर में उसका घाव भरने लगता है, रक्षक यह देखकर हैरान था।
बाकी सारे सर्पितृल अपने राजा का यह हाल देखकर रक्षक की ओर कूदते हैं, और उसके दबोचने की कोशिश करते हैं पर रक्षक अब क्रोध में था, उसके दोनों हाथ दहकते लावे बन चुके थे, हर अंधेरे में रहने वाले जीव इस विशेष जवालाशक्ति को झेल पाने में सक्षम नही थे।
रक्षक को थोड़ा संतोष हुआ कि कुछ तो कारगर हुआ है, पर यह भी अंधेरे का छलावा ही निकला, थोड़ी देर बाद आग का भी असर होना बंद हो गया और आग से झुलसे सभी सैनिको के जख्म अपने आप भर गए। रक्षक इन विचित्र जीवो की हर ताक़त की जितना जानता, उतना ही हैरान हो रहा था, शाम होने को आ चुकी थी पर युद्ध का कोई नतीजा नही निकला, तमसा ने तो।अभी युद्ध मे हाथ तक नही लगाया और रक्षक एवं उसके साथी आज बस अपने प्राण बचा रहे थे। युद्ध लड़ने का तो अवसर ही नही मिला उन्हें, उनका हर एक वार, हर तरकीब असफल होती जा रही थी। थोड़ी ही देर में युद्ध समाप्ति के डंका बजने वाला था। अब तक युद्ध पूरी तरह अंधेरे के पक्ष में ही रहा, ईश्वर जाने अंधेरे की मंशा आज क्या थी।
रक्षक अब इतने शक्तियों के होने के बाद भी असहाय महसूस कर रहा था, वो अपने साथियों के करीब नही जा पा रहा था। वह किसी तरह खुद को पंचभूत और उसके सर्पितृल सेना से बचाये हुए था। तभी युद्ध का घण्टा बजा, अगर यह युद्ध लगातार चलता तो इस हाल में उजाले के रक्षक निश्चय ही हार जाते, पर अब कल क्या होगा इसको तो समय ही जाने।
'उधर उसी ग्रह पर भूमिगत राज्य के वैनाडा के राजदरबार में गुरुजी और महाराज इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। उनके दूतों से undead के मृत्यु और तमसा के आगमन के बारे में पता चल चुका था। वो बस इस बारे में परेशान हो रहे थे कि अगर रक्षक भी काली ताक़तों को नही रोक पाया तो फिर क्या होगा? क्या फिर से क्रोध उसका दुश्मन बन जायेगा? शायद इस डर से वो खुद को क्रोधित होने से भी रोकता होगा! अटकले लगाई जा रही थी। पर आज का युद्ध तो बस एकतरफा था जिसकी खबर भी थोड़े देर में राजदरबार तक पहुचने वाली थी और अगर वो हार गए तो उजाले के केंद्र का क्या होगा, आखिर क्या है उजाले का केंद्र जो इस ग्रह को खास बनाता है और कई खतरों के मेजबान भी...
Niraj Pandey
08-Oct-2021 04:39 PM
बहुत ही शानदार👌👌
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Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 12:14 PM
नाइस पार्ट
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