नारी
वो शक्ति है और भक्ति है
वो कुछ भी कर सकती है
स्वछंद जो जीने दो उसको
हिला वो पर्वत सकती है
ना नारी को सम्मान मिला
ना कोई पुष्प उस जैसा खिला
ना सिवा प्रेम के कुछ मांगा
वो प्रेम भी उसको नहीं मिला
दंभ पुरुष का खुद पर भारी है
भुला वो जन्मती नारी है
जो छोड़ेगी वो मोह अपना
हे पुरुष वो तुझपर भारी है
धन के नाम पर लक्ष्मी है
शीतलता में गंगा हमारी है
है ज्ञान का सागर सरस्वती
रक्षक बने तो दुर्गा प्यारी है
भावना उसकी ना समझ सके
अभी कच्ची मति तुम्हारी है
कमजोर समझ उसे ना छेड़ो
वो ना अबला है ना बेचारी है