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तुम और चश्मे का फ़्रेम

तुम और चश्मे का फ़्रेम
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तुम्हारी हर बात,हर मुलाक़ात  इस प्रकार याद है मुझे जैंसे अभी अभी का वाकिया हो,
वो तेरा हर बात पर मुस्कुरा देना,झूंठी कहीं की कहना क्या भुलाया जा सकता है।

झिड़की मे भी कितना प्यार छिपा होता था,
मां के दुलार का अहसास दिला जाता था।

तुमने उपहार भी बहुत दिए मुझे,
छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना छुड़ा दिया तुमने।

बिना दूर तक सोचे जवाब न देना,सिखा दिया तुमने।
ये सब उपहार तुमने दिए मुझे जो अब मेरे गुण कहलाए जाते हैं।

भौतिक उपहार तुम लाए तो बहुत परन्तु मै लेती नहीं थी,
हां वो चश्मे का बहुत सुन्दर फ़्रेम वो आज भी वैंसा ही संजो रखा है मैंने।

उसमें  शीशा जड़वा कर उसकी बेकद्री करना भाया‌ नहीं मुझे,
वो तुम्हारा बहुमूल्य उपहार है सदा संभाले रखना‌ है मुझे।

सर्जरी के बाद मेरी आंखें अब ठीक है,चश्मे की आवश्यकता नहीं मुझे।
जब तुम बहुत याद आते हो तो खाली फ़्रेम को आंखों पर रख लेती हूं, ख़ुद की फ़ोटो खींच लेती हूं।

चूम लेती हूं उस फ़्रेम को और आंसू बहा लेती हूं
हर रोज़ तुम्हारी सलामती की ख़ुदा से दुआ करती हूं।

उम्मीद है तुम अपने परिवार में ख़ुश रहते होंगे,
अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ खेला करते होंगे।

मै तो विवाह न कर पायी,पापा ने बहुत समझाया परन्तू मै खुद को न समझा पायी।

एक कालेज में पढ़ाती हूं, बहुत से लड़के लड़कियों को,
उन्हें ही अपने बेटा-बेटी मान कर खेलने लगती हूं,
स्वयं को भूल जाती हूं।

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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1 Comments

Milind salve

12-Feb-2023 03:31 PM

बहुत खूब

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