गीत (सावन-घन-16-12)
*गीत*
*गीत*(सावन-घन-16/12)
सुंदर काव्य-सृजन हेतु जब,
कविगण अति अकुलाएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
टप-टप करतीं जल-बूँदें सुन,
चित्त मुदित अति होता।
झम-झम बारिश का जल सारा,
सारी धरा भिगोता।
मोर मगन मन नाचे वन में-
प्रमुदित सकल दिशाएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
वन-उपवन के तरु-तृण सारे,
जागें चिर निद्रा से।
शिथिल-शुष्क जो रहे अभी तक,
मुक्त सभी तंद्रा से।
जल-बूँदों के सँग ही झर-झर-
शीतल बहें हवाएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
अवनि सावनी बादल पाकर,
मस्त-मुदित इठलाती।
सूखी सरिता जल-आपूरित,
मचल-मचल बलखाती।
अद्भुत-अनुपम छटा सावनी-
लख सब भगें बलाएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
शुभ हरीतिमा चहुँ-दिशि फैले,
मदमाती गदराई।
धानी चुनरी पहन अवनि की
ललचाती सुघराई।
कजरी गीत सुरीला सुन-सुन-
व्यथित हृदय हुलसाएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
जीवन-दायक घन पुनीत यह,
अद्भुत भेंट कुदरती।
सिंधु-कृपा से उपजे तोयद,
प्यास बुझाने धरती।
रिम-झिम,रिम-झिम बरसे जब घन-
फसलें सब लहराएँ।
उमड़-घुमड़ घन घिर सावन के-
नभ से जल बरसाएँ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919र46372
Haaya meer
13-Feb-2023 09:40 PM
Very nice
Reply
Muskan khan
13-Feb-2023 09:27 PM
Nice
Reply
Gunjan Kamal
13-Feb-2023 10:32 AM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
Reply