फ़र्ज(भाग:-6)
फ़र्ज़ चैप्टर 6
अब तक आपने पढ़ा सब पार्टी कर रहे थे और मजे कर रहे थे अभिमन्यु को अभी भी वही सपने आते हैं सारे सोल्जर जय को मेजर साहब की नकल करने के लिए कहते हैं....
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"अब आगे"
जय माइक ले कर मेजर सर की ओर बढ़ा, और उनके हाथ से सिगार लेकर वापस आया और अपने मुँह के पास ले जाकर वापस हाथ नीचे करते हुए वो मेजर साहब के जैसे जोर से खाँसा । ओर रोबदार आवाज में बोला "जवानो तुम लोग अब मामूली इंसान नही रहे , जिस दिन तुम सब ने यह वर्दी पहनी थी उसी दिन से तुम एक खास शख्सियत बन गये थे, वो इंसान जो दुश्मनों पर मौत बन कर बरसती है और अपनो के लिए सम्मान और प्यार लिए"
जय आगे बोला "देखते है मेजर साहब को अगर किसी लड़की को प्रपोज करना होगा तो वो कैसे करेंगे"। ओर फिर बोलने लगा.....
मेजर सर - "मैं तुमसे प्यार करता हु क्या तुम मुझसे शादी करोगी"
लड़की मना करते हुए केहती है- "मत कर मेरा पीछा, एक दिन पछतायेगा… बाहर कॉलेज के तू, छोले-भठूरे की दुकान लगाएगा"
मेजर सर- "तू मत ठुकरा मेरे प्यार को, एक दिन पछताएगी…
उसी छोले-भठूरे की दुकान पर,
तू भी बर्तन मांजती नजर आएगी"
? ? ?
मेजर साहब ने अपने पास पड़ी पानी की बोतल जय को मारी जिसको जय ने पकड़ लिया। और सारे जवान जोर से हँसने लगे। इसमे अभिमन्यु भी था जिसको हँसता हुआ देख मेजर साहब भी हँस पडे।
जय ने अगली पर्ची निकाली जिसमे सौरभ का नाम था । जय ने पूछा तो वो बोला डेर फिर क्या जय तो इसी इन्तजार था कि कोई मिले और उससे कुछ कराऊ। पर कोई मौका ही नही दे रहा था। जय बोला "तो फिर ठीक है यह आप करिये -
आपको सिर्फ एक पैर के साथ डान्स करना होगा ओर जय ने गाना बजाया"
दरवाज़े को कंडी मारो
कोई न बच के जाने पाये
DJ को समझा दो
म्यूज़िक ग़लती से भी रुक ना जाए
आधा टका जो फ़ील करे वो
दो रेड बुल गटक ले और
जिसको डान्स नहीं करना
वो जाके अपनी भैंस चराए
बस आज की रात है
कल से वही सियाप्पे हैं
जी भर के नाच लो
ना घरवाले ना मापे हैं
सब पे अपना राज है
डरने की क्या बात है
ये तो बस शुरूवत है
सौरभ थोडी तो सही से नाच रहा था, लेकिन एक पेर तो पहले से ऊपर था और वो एक हाथ कमर पर रख कर ठुमके लगा रहा था तभी अचानक उसका बैलेंस बिगडा ओर वो नीचे गिर गया । सभी पहले से हँस रहे थे अब ओर जोर से हँसने लगे। सौरभ भी सभी के साथ नीचे बैठ कर हँसने लगा।
अगला नंबर आया अभिज्ञान का उसने भी dare लिया। फिर क्या उसको भी डांस के लिए ही बोला सभी ने।
जय ने गाना लगाया
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं
इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं
इन आंखों...
इक तुम ही नहीं तन्हा, उलफ़त में मेरी रुसवा
इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं
इन आँखों...
इक सिर्फ़ हम ही मय को आँखों से पिलाते हैं
कहने को तो दुनिया में मयखाने हज़ारों हैं
इन आँखों...
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ को आंधी से डराते हो
इस शम्म-ए-फ़रोज़ाँ के परवाने हज़ारों हैं
इन आँखों..
अभिज्ञान ने जब यह गाना सुना तो अपने पास बैठे सौरभ से शोल ले ली जो वो कबसे सर्दी से बचने के लिए ओढ़ कर बैठा था। शोल को अपने सिर पर चुनरी के जैसे ओढ़ कर अभिज्ञान डांस करने लगा।और साथ साथ वो मेजर सर के पास जाकर रेखा जी के जैसे एक्टिंग भी कर रहा था जिसको देख कर सभी को हँसी तो आ रही थी पर अभिज्ञान का डांस देखने मे भी मजा आ रहा था वो काफी अच्छा डांस कर रहा था।
उसके बाद जय ने चिट्ट निकाली और इस बार नाम आया कैप्टन अभिमन्यु का । सभी को कैप्टन का ही इंतजार था की वो क्या करते है। अभिमन्यु का नाम आते ही जय कुछ बोलने को हुआ कि मेजर सर बीच मे बोले "की आप सबको शायद एक बात पता नही है आपके कैप्टन बहुत अच्छा गाते भी है। पर कैप्टन अपनी यह ख़ूबी किसी को दिखाते नही है"
मेजर तो यह केहकर शान्त हो गए ! परन्तु अभिमन्यु मेजर सर को ऐसे देख रहा था जैसे कुछ कहना चाहता है पर कुछ भी बोल नही पा रहा था। उस समय अभिमन्यु के चेहरे पर 12 बजे हुए थे ।
वो तो बहुत मना करता रहा पर जवान नही माने उनको आखिर कार गाने के लिए तैयार होना पड़ा। जय ने आकर अभिमन्यु को माइक दिया और वो गाने लगा। उसकी आवाज शांत , सरल और मीठी थी जिसमे एक दर्द था सभी लोग आँखे बंद करके अभिमन्यु का गाना सुन रहे थे।गाने के बोल कुछ इस प्रकार से थे
"कभी यादों में आऊं, कभी ख़्वाबों में आऊं
तेरी पलकों के साये, में आकर झिलमिलाऊं
मैं वो खुशबू नहीं जो, हवा में खो जाऊ
हवा भी चल रही है, मगर तू ही नहीं है
फिज़ा रंगीन बनी है, कहानी केह रही है
मुझे जितना भुलाओ, मैं उतना याद आऊं
हां.. हां..
जो तुम ना होते, होता ही क्या हार जाने को
जो तुम ना होते. होता ही क्या हार जाने को
मेरी अमानत हो तुम, मेरी मोहब्बत हो तुम
तुम्हे कैसे मैं भुलाऊं.......
तू आसमान मेरा जहाँ लगे मुझे
तू रास्तों की मंजिलें लगे मुझे,तू ही मेरी चांदनी वो,
रातों को जो हलकी सी जले,तू ही मेरी शाम-ओ-सेहर,
जो मेरे संग चले ,हवा भी चल रही है,
मगर तू ही नहीं है,फिज़ा रंगीन बनी है,
कहानी केह रही है,मुझे जितना भुलाओ,
मैं उतना याद आऊँओ.....
हम्म......
कभी यादों में आऊं,कभी ख़्वाबों में आऊं"
गाना गाते हुए अभिमन्यु की आंखों में हल्की नमी आ गयी थी। सभी ने अभिमन्यु के गाने के लिए तालि बजाकर उसका अभिनंदन किया। जय ने खेल को आगे बढ़ाया आगला नम्बर संजय का आया। उसने ट्रुथ चुना। सौरभ ने कुछ सोच कर संजय से बोला
"क्या आपने नशे में ऐसा कोई काम किया है जो अगले दिन आपको याद नहीं था"
संजय मुस्कराये हुए बोला "बिल्कुल है मैने ऐसा एक काम किया था। यह बात तब की है जब में कॉलेज में था मैंने पहली बार शराब पी थी वो भी दोस्तों ने जबरदस्ती पिला दी थी। उन्होंने मुझे एक लडक़ी को प्रोपोज़ करने के लिए बोला जिस लड़की को मैं 2 साल से पसन्द करता था। मैने पहली बार पी थी इसलिए कोई होश तो था नही ओर उनकी बात मन कर चला गया और जाकर उसको I LOVE YOU और पता नही क्या क्या बोला था मैंने मुझे भी याद नही"
जय बोला "फिर क्या हुआ"। वो बोला "होना क्या था मैं अगले दिन आराम से कॉलेज गया मुझे कुछ भी याद नही था कि कल मेने क्या किया। मैं दोस्तो के साथ कैन्टीन में बैठा था और वो आयी और बोली मेरा जवाब जानना नही चाहोगे"
" मेरी तो आवाज ही नही निकल रही थी क्योंकि वो पिछले 2 सालों में पहली बार मुझसे बात कर रही थी वो भी आगे से। में बहुत मुश्किल से बोला क्या मतलब आपका"
वो बोली "तुमने कल ही तो मुझे प्रोपोज़ किया था इतने जल्दी भूल गए" उस समय मैंने यह सुना तो अचानक से मुझे खाँसी शुरू हो गयी थी उसने मुझे पानी पिलाया ओर मुस्कुराते हुए उसने अपने हाथ ने पकड़ा गुलाब का फूल मेरी तरफ करते हुए बोली I LOVE YOU TOO"
यह सुनते ही मैं तो बर्फ के जैसे जम गया था जब उसने चुटकी बजाई तब मुझे ध्यान आया और मैने अपने दोस्तों की तरफ देखा तो वो कुछ इशारे कर रहे थे पर मुझे कुछ भी समझ नही आ रहा था पर मैने हिम्मत करके उसके पास जाकर बोला "मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हु ओर वो भी पिछले 2 साल से"
सौरभ बोला "उसके बाद क्या हुआ"
सजंय उसके गले मे हाथ डालते हुए बोला "होना क्या था कॉलेज खत्म होते ही घर पर बात की घर वालो ने शादी करवा दी। अब एक 1.5 साल की लड़की हैं"
अभिमन्यु बोला "बच्ची का क्या नाम है"। वो बोला संजना ।
मेजर साहब मुस्कुराते हुए बोले "यह तो तुम्हारे लिए तो अच्छा हुआ कि तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हें पिलाई जिससे तुम्हारा प्यार आज तुम्हारे साथ है और तुम्हारे प्यार की निशानी भी"
संजय बोला है "सर सही कहा आपने दोस्तों का तो हमेशा अहसान रहेगा मुझ पर"
अभिज्ञान बोला "सर मैं कुछ सुनाना चाहता हु"। मेजर साहब ने हा में गर्दन हिलाई। अभिज्ञान बोला
दोस्ती नाम है सुख-दुःख की कहानी का,
दोस्ती राज है सदा ही मुस्कुराने का,
ये कोई पल भर की जान-पहचान नहीं है,
दोस्ती वादा है उम्र भर साथ निभाने का।
ऐसे ही आगे का खेल जारी रहा । सभी ने मजेदार बाते की , सभी ने अपनी जिंदगी के कुछ हसीन पल जिये ओर साथ ही सभी ने बहुत मजे किये। रात को 12 बजे सभी ने आतिशबाजी की ओर 1 बजे मेजर सर ने सभी को सोने का बोल दिया। सभी सोने अपने अपने कमरों ने चले गए। दिन भर की थकान की वजह से सभी जल्दी ही सो गए।
अगले दिन सभी को 6 बजे ग्राउंड में बुलाया था जैसे ही लोग ग्राउंड में पहुंचे हर कोई देखता ही रह गया।
क्या हुआ है ग्राउंड मे जानने के लिए पढ़ते रहिये मेरी कहानी फर्ज़ मिलते हैं अगले चेप्टर मे तब तक के लिए
बाय बाय
कमशः
।। जयसियाराम ।।
vishalramawat"सुकून"(जाना)
#van
अदिति झा
17-Feb-2023 10:47 AM
Wah bahut khoob
Reply
सीताराम साहू 'निर्मल'
16-Feb-2023 07:17 PM
Nice 👍🏼
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Alka jain
14-Feb-2023 12:39 PM
बेहतरीन
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