*# छलनी कर देना*
बहुत बात इंसान चाहकर भी कुछ नही कर सकता क्योंकि परिस्थितियों के हाथों वह मजबूर जो होता है। अर्चना की जीवन शैली भी तो ऐसी ही थी कि सबकुछ करने के बाद भी रोज ही कोई ना कोई बात उसका कलेजा छलनी कर ही जाते थे।
"आपको किसी चीज की जरूरत तो नहीं ।" अर्चना ने अपने पति संजय से पूछा ।
" नहीं चाहिए कुछ भी । क्यों बार - बार आकर मेरा दिमाग खराब करती रहती हो । कितनी बार कहा है अपने काम से काम रखो ना लेकिन तुम्हें तो महान बनना है इसलिए मेरे मना करने के बाद भी मेरे पास चली आती हो।" संजय ने गुस्से में अर्चना की तरफ देखते हुए कहा ।
संजय की कही बातें अर्चना के कलेजे को छलनी करती हुई उसकी ऑंखों में ऑंसू के रूप में छलकते उससे पहले ही वह अपने कमरे में आने के लिए संजय के कमरे से मुड़ गई। अपने कमरे में आकर वह बिस्तर पर लेट गई । नींद आ जाएं इसकी भरपूर कोशिश करने के बाद भी नींद नही आई तो वह खिड़की के पास आकर खड़ी हो गई । बाहर से आती पुरबाई हवा ने जैसे ही उसके तन को छुआ उसे सुकून की अनुभूति हुई ।
खिड़की के पास बहुत देर तक यूं ही खड़ी हवाओं को अपने भीतर समाहित करने के बाद वह वहां से हटकर अपने बिस्तर की तरफ आ ही रही थी कि दीवार पर टंगी कैनवस पर उसकी नजर मानों ठहर सी गई ।
पिछले बार ही तो खरीद कर लाई थी । उसमें बने घर और उसके आगे बहने वाली नदी ने उसे खासा प्रभावित किया था । कलरव को दर्शाती नदी आगे बढ़ती ही जा रही थी वों भी ढ़लानुमा रास्ते पर । उस नदी को देखकर अर्चना को लगता कि उसका जीवन भी तो इसी जैसा है । लाख कोशिश करने बाद भी वह दूसरों के लिए जीना नहीं छोड़ पा रही थी ।
उसके पति संजय ने दुनिया की तमाम खुशियां उसके कदमों में लाकर रख दी थी लेकिन जिस प्यार पर सिर्फ एक पत्नी का हक होता है उसने उसे कभी दिया ही नहीं था । हालांकि गरीब घर में पली-बढ़ी अर्चना के साथ उसने किसी भी प्रकार का छल ना करते हुए उसे शादी से पहले ही बता दिया था कि वह शादी सिर्फ अपने दोनों बच्चों और घर - परिवार के लिए ही कर रहा है । उसके घर को एक औरत की जरुरत है उसे ऐसी औरत की अपनी जिंदगी में कोई जरूरत नहीं जो उसकी पहली पत्नी की जगह उसकी जिंदगी में लें सकें ।
पिता को गरीबों की तरह जिंदगी ना गुजारनी पड़ी उसके लिए अर्चना ने बेटी का फर्ज निभाया और आ गई संजय के बड़े घर में । बच्चों को सगी मां का प्यार दिया । घर की सारी जिम्मेदारियों को सहर्ष स्वीकार कर लिया लेकिन उसे किसी ने नहीं स्वीकार किया ।
दोनों बच्चें भी जब तक छोटे थे उन्हें उसकी जरूरत थी तब तक उन्होंने भी उसे झेला । हां झेला ही क्योंकि उन्होंने भी उसे कभी भी मां का दर्जा नहीं दिया ।
अर्चना भी सब कुछ जानते - बूझते इसलिए अनजान बनी हुई थी क्योंकि उसे भी एक ऐसी छत चाहिए थी जिसमें वह महफूज़ रह सकें । उसकी इज्जत बची रह सकें । गरीब घर की बेटी - बहू को सब अपनी जागीर समझने लगते है और अर्चना को ऐसी जिल्लत भरी जिंदगी कबूल नहीं थी ।
रोज अपने कलेजे को छलनी करने के बाद भी अर्चना अपनी इज्जत और मान-सम्मान इसी घर में बचाती आई थी । संजय ने अपना कहा वादा आज तक निभाया था । कभी भी अर्चना को पत्नी का दर्जा दिया ही नहीं उसने । फेरों के वक्त लिए सात वचनों को आजतक सिर्फ अर्चना ही निभाती चली आ रही थी ।
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धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
# मुहावरों की दुनिया
Mahendra Bhatt
19-Feb-2023 09:05 PM
बहुत खूब
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डॉ. रामबली मिश्र
18-Feb-2023 09:26 PM
शानदार
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अदिति झा
17-Feb-2023 10:39 AM
Nice 👍🏼
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