*# जली -कटी सुनाना!*
"ऐ भौजी! हमारा दोस्त लखिया तो शहर जाकर वही का हो गया है। अब ना लौटकर आएगा वह। अगर भूले - भटके कभी आ भी गया तो उसके साथ गोरी मेम होगी लेकिन आप चिंता मत करना। हम सब है ना आप को संभालने के लिए।" दांत में निपोरते कहें गए हरिया की बातें सुनकर लखिया की अम्मा ने अपने हाथ में पकड़ी लाठी जोर से बजाते हुए कहा "हमारे रहते हमारे बहुरिया की फिक्र करने की कोई जरूरत ना है। हम जानत है तुम जैसन आवारा लोगन को। कोई काम - धंधा है ना तो आ गए हमारी बहुरिया को सुनाने।"
"ए अम्मा! अपने लखिया पर इतना विश्वास मत कर। तुम सब को धोखा देकर भाग गया है। नहीं तो सात बरस बीत जाने के बाद भी कोई खोज - खबर ना रखता क्या? इतना छोटा तो है ना कि गांव का रास्ता ही भूल गया। हम सब को तो लगता है कि वह शहर में ही बस गया है कभी लौटकर नहीं आएगा।" हरिया ने लखिया की अम्मा की कहीं बात का जवाब देते हुए कहा।
"हम अच्छी तरह जानत है हमारे बिटवा को। ऊ का कर सकत है और का ना ई तुमसे सुनने की जरूरत ना है हमका। चल भाग हीआ से, जाकर अपना घर - गृहस्थी संभाल।" लखिया की अम्मा ने गुस्से में देखते हुए हरिया से कहा।
हरिया और उसके आवारा दोस्त जली-कटी सुनाकर लखिया के घर से चले तो गए लेकिन लखिया की अम्मा और उसकी पत्नी के लिए वह सवाल छोड़ गए जो सवाल अक्सर उनके मन - मस्तिष्क को दुखी कर जाते थे।
आज से सात साल पहले लखिया यह कह कर अपने घर से निकला था कि वह नौकरी की तलाश में शहर जा रहा है। शहर से कुछ पैसे कमा कर वह जल्दी वापस लौटेगा जिससे कि उसकी परिवार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी। गांव में खेती से उतना धन एकत्रित नहीं हो पाता था कि बीमारी के समय में उस धन का उपयोग किया जा सके। लखिया के पिता भी हमेशा बीमार रहते थे और उनकी दवा के पैसे भी कम पड़ते थे। लखिया के जाने के छः महीने बाद सिर्फ एक बार ही एक हजार रुपए लखिया की अम्मा को मिले थे लेकिन उसके बाद से आज तक एक भी पैसा ना तो किसी को मिला था और ना ही लखिया स्वयं ही आया था। स्थिति चिंताजनक थी लेकिन शहर में वहां का पता किसी को भी नहीं था जहां लखिया रहता था। ऐसे में सिर्फ उसके आने की ही उम्मीद लिए लखिया का पूरा परिवार जी रहा था।
यह वह दौर था जब गांव में टेलीफोन तक की भी सुविधा नहीं थी। बातचीत का जरिया तार या पत्र ही हुआ करता था लेकिन लखिया की तरफ से एक भी खत आज तक उन लोगों को नहीं मिला था और यें लोग भी खत किस पते पर भेजते क्योंकि इनके पास पता भी तो नहीं था। लखिया के जाने के बाद घर जैसे - तैसे गांव में खेती के भरोसे चल रहा था। लखिया की पत्नी खेतों में स्वयं जाकर मेहनत - मजदूरी कर पूरे घर - परिवार का भरण पोषण कर रही थी। ससुर भी बढ़ती उम्र के कारण काम कर नहीं पाते थे इसलिए लखिया की पत्नी पर ही सारी जिम्मेदारी थी। घर की बहू होने के नाते वह सारी जिम्मेदारी उठा भी रही थी। लखिया जब गांव से शहर की तरफ रवाना हो रहा था अपने पीछे वह अपने माता - पिता और पत्नी के अलावा डेढ़ साल का बेटा भी छोड़ कर गया था।
लखिया की अम्मा और उसकी पत्नी आज तक गांव वाले और आवारा आदमियों की जली कटी बातें सुनने के बाद भी इसी उम्मीद में जी रहे थे कि एक दिन लखिया वापस जरूर अपने गांव आएगा और पहले की तरह ही अपनी घर - गृहस्थी को संभाल लेगा लेकिन आज लखिया का दोस्त हरिया जब ऐसी बातें कह कर गया लखिया की अम्मा और उसकी पत्नी के दिल में कहीं ना कहीं यह बात घर करने लगी थी कि अब शायद! लखिया वापस कभी भी लौट कर नहीं आएगा। शायद! उसने शहर में ही अपनी अलग दुनिया बसा ली हो और वह उस दुनिया में बहुत खुश हो। गाॅंव की इस मुसीबत भरी जिंदगी को वह याद भी नहीं करना चाहता हो इसलिए वह लौट कर वापस नहीं आया।
एक दिन अचानक ही एक मोटर गाड़ी लखिया की झोपड़ी के पास आकर रुकी। गांव में कितने बरसों के बाद लखिया की झोपड़ी के आगे कोई आकर रुका था। ऊपर से उस समय मोटर गाड़ी का आना भी एक बड़ी बात होती थी। गांव के लोगों की भीड़ इकट्ठी होने भी शुरू हो गई थी। लोगों ने देखा कि सूट - बूट में चश्मा लगाए एक आदमी मोटर गाड़ी से बाहर निकलकर लखिया की झोपड़ी में घुस रहा है।
ध्यान से देखने पर लोगों को पता चला कि अरे! यह तो लखिया है। इतने वर्षों बाद इतना बड़ा आदमी बन कर गांव में वापस आया है। यह देखकर सभी आश्चर्य में थे क्योंकि उन लोगों ने भी उसके आने की उम्मीद छोड़ दी थी। गांव के जो लोग जली कटी सुनाने अक्सर आ जाया करते थे वें आज आए तो थे लेकिन आज वें लखिया की तारीफ कर रहे थे।
झोपड़ी के बाहर ही बैठी अम्मा के पांव छूते हुए लखिया रो पड़ा था। वैसे तो अम्मा को कम ही दिखाई देता था लेकिन अपने बेटे के स्पर्श को भला एक माॅ कैसे नहीं पहचान पाती। अपनी अम्मा के गले लग कर लखिया रो रहा था। दोनों की आंखों से ही अविरल अश्रुओं की धारा बह रही थी। पास ही खडी लखिया की पत्नी की भी आंखें गीली थी। अपनी मां के पास खड़ा लखिया का बेटा भी कुछ देर तक उसके पास यह सोचकर नहीं आया कि मालूम नहीं कौन है? जब उसे यह मालूम हुआ कि उसके दादी के गले लग कर रोने वाला शक्स और कोई नहीं बल्कि उसका पिता है तो वह भी अपने गले लग कर रोने लगा।
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💓💞💗
# मुहावरों की दुनिया
Mahendra Bhatt
19-Feb-2023 09:04 PM
बहुत खूब
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डॉ. रामबली मिश्र
18-Feb-2023 09:25 PM
शानदार
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अदिति झा
17-Feb-2023 10:38 AM
Nice
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