Prbhat kumar

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सामने मौत अपना देखो दिखाई दे रहां हैं

सामने मौत अपना देखो दिखाई दे रहां हैं।
जिन्दगी का देखो सच दिखाई दे रहां हैं।

यह रूप रंग  जीवन  का क्षण भंगुर हैं। 
साथ अपने प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहां हैं।

वक्त के साथ दोस्ती नही किसी कि यहाँ।
आज अपना देखो पराया दिखाई दे रहां हैं।

साथ अपने जो कभी जीवन में चल रहा था।
आज आँख से ओझल होते दिखाई दे रहां हैं।

एक क्षण आत्मा तन के संग रहना चाहता हैं।
प्राण तन से अब पृथक होते दिखाई दे रहां है।

स्वरचित एवं मौलिक रचना 
नाम:- प्रभात गौर 
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश

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4 Comments

Gunjan Kamal

18-Feb-2023 11:15 PM

बहुत खूब

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Renu

18-Feb-2023 06:44 PM

👍👍🌺

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Varsha_Upadhyay

17-Feb-2023 09:26 PM

Nice

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