Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय मन को रिझाती रही

भोर की लाली मनको रिझाती बहुत। 
/////////////////पूर्णिका///////////
भोर की लाली मनको रिझाती बहुत। 
भोर की लाली तनको सजाती बहुत। 

भोर में कलरव  करते  है पक्षी सभी,
प्रातः बेला यह सबको लुभाती बहुत। 

सूर्योदय  के  पहले ,विस्तर  छोड़  दे,
शारीरिक ब्याधिया भागजाती बहुत। 

भोर की लालिमा अति सुहावन  लगे,
भोरकी लालिमा तन महकाती बहुत। 

भोर की लालिमा ,याद  ईश्वर  की दे,
याद ईश्वर की आती, सुहाती  बहुत। 

सरिता बहती रही है मिलन के लिए,
मिलती सागर जबभी लजाती बहुत। 

सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर।

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6 Comments

Sushi saxena

22-Feb-2023 07:51 PM

बेहतरीन

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Renu

19-Feb-2023 06:16 PM

👍👍🌺

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बहुत खूब

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