Sunita gupta

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दैनिक प्रतियोगिता हेतु स्वैच्छिक विषय बस चाल मिलानी है

बस चाल मिलानी है....

ना तलवार चलानी है
ना हथियार उठाने हैं 
नारी को नारी के संग
बस चालमिलानी है...

आंसू बहाने हैं 
ना पहचान छुपानी है 
नारी को नारी के संग 
बस आवाज मिलानी है...

वह सास जो लड़ती थी
जो बहू जलाती थी
दहेज पर मरती थी
नारी को नारी के
वह सास हटानी है...

न अनशन करने हैं
न धरने करने हैं
नारी को नारी के संग
कुछ सपने बुनने है...

ना तलवार  चलानी है
 ना हथियार उठाने है...
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर 

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6 Comments

Sushi saxena

22-Feb-2023 07:38 PM

बेहतरीन

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बहुत ही उम्दा पंक्तियाँ

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Alka jain

20-Feb-2023 11:10 PM

Nice

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