Add To collaction

त्याग

*त्याग*

होती है ज़रूरत त्याग की रिश्तों को निभाने में।
निष्काम कर्म-फल होता है अति मीठा खाने में।।
     निज सुख-चिंतन होता पशुवत दुनिया माने है,
     पर-उपकार ही लक्ष्य हो जिनका संत-सुजाने हैं।
     सुख पाती माँ स्वयं जाग सुत-सुता सुलाने में।।
                                निष्काम कर्म-फल होता.....।।
खा प्रहार पत्थर का तरुवर देता फल मनचाहा,
कभी न कहता सिंधु नीर दे,तुमने कहर है ढाहा।
करे कृपणता कभी न नीरद जल बरसाने में।।
                           निष्काम कर्म-फल होता.........।।
बिना कहे नित पवन है बहता जीव-जंतु-हितकारी,
करके हरण निशा-तम चंदा बनता जग-सुखकारी।
स्वयं को माने धन्य भास्कर,दिवस-उजाला लाने में।।
                         निष्काम कर्म-फल होता..........।।
अन्न-सम्पदा पृथ्वी देती मुक्त हस्त से जन-जन को,
बिना मोल सुन कलरव मिलता,सुख-सुक़ून हर तन-मन को।
लिपट पतंगा दीप-शिखा से पाता सुख जल जाने में।।
                       निष्काम कर्म-फल होता...........।।
मिले इत्र सी खुशबू,हर वक्त सुगंधित मधुवन से,
कोयल गाती गीत सुरीला,बैठ शिखा तरु उपवन से।
चंदन करे कुठार सुगंधित,यद्यपि कि कट जाने में।।
                    निष्काम कर्म-फल होता...........।।
गिरि के उच्च शिखर से गिरता,जल-प्रपात मन भाए,
मेघाच्छन्न गगन को चित-मन,निरखि-निरखि हरषाए।
मिले प्रकृति को सुख असीम,निज छटा दिखाने  में।।
       निष्काम कर्म -फल होता है अति मीठा खाने में।।
                              © डॉ. हरि नाथ मिश्र
                                    9919446372

   9
3 Comments

Renu

27-Feb-2023 11:14 PM

👍👍🌺

Reply

Sachin dev

27-Feb-2023 09:45 PM

Nice

Reply

Alka jain

26-Feb-2023 02:19 PM

Nice

Reply