लेखनी प्रतियोगिता -25-Feb-2023 नारी का त्याग
भाग्यवती के पिता सेठ रतन लाल के घर बावर्ची थे। उनके हाथ की दाल सब्जी ही नहीं रोटी भी बहुत स्वादिष्ट होती थी। गरम फूली हुई देसी घी लगाकर जब वह थाली में खाना परोसते थे, तो खाने वाले खाते खाते हटते नहीं थे। उनकी पत्नी का देहांत हो चुका था। भाग्यवती उनकी इकलौती पुत्री थी।
भाग्यवती 13 वर्ष की आयु में ही अपने पिता जैसा स्वादिष्ट खाना बनाने लगी थी। भाग्यवती आदर्शवादी बेटी थी। अचानक दिल का दौरा पड़ने से पिताजी की मृत्यु के बाद सेठ रतन लाल ने भाग्यवती को अपने घर में शरण दे दी थी। लेकिन भाग्यवती ने भी अपने अच्छे स्वभाव और अच्छे संस्कारों से तीन महीने में ही सेठ रतन लाल का दिल जीत लिया था।
और सेठ रतन लाल ने अपने 22 वर्ष के पुत्र राजपाल से 15 बरस की भाग्यवती की शादी कर दी थी। राज्यपाल भी अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था।16 वर्ष की छोटी आयु में भाग्यवती एक बेटी की मां बन जाती है। लेकिन छोटी आयु में मां बनने की वजह से भाग्यवती के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। और डॉक्टर जवाब दे देते हैं कि भाग्यवती अब कभी भी अपने जीवन में मां नहीं बन सकती है।
जब भाग्यवती की बेटी की आयु 16 वर्ष की थी, तो पहले ससुर रतनलाल और बाद में सांस रामप्यारी का निधन हो जाता है। भाग्यवती जब अपनी बेटी के साथ कहीं बाहर घूमने फिरने जाती थी, तो लोग समझते थे कि भाग्यवती अपनी बेटी आरती की बड़ी बहन है। क्योंकि भाग्यवती अपनी बेटी से सिर्फ 16 साल ही आयु में बड़ी थी। और दूसरा उसकी ससुराल में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी।
आरती को गांव के सबसे पढ़े-लिखे लड़के माधव से प्रेम हो जाता है। लेकिन माधव बहुत गरीब परिवार का था। इसलिए आरती के पिता राज्यपाल आरती की शादी के खिलाफ थे। लेकिन भाग्यवती की नजरों में शिक्षा की बहुत अहमियत थी। इसलिए भागवती के समझाने से आरती के पिता आरती का विवाह माधव से करवा देते है।
उस दिन के बाद माधव की नजरों में भाग्यवती का मान सम्मान और बढ़ जाता है। माधव जब भी आरती और अपने जीवन का कोई बड़ा फैसला लेता था, तो भाग्यवती से जरूर सलाह लेता था। और भाग्यवती के कहने से उसके पति राजपाल ने अपने कारोबार की पूरी जिम्मेदारी माधव के ऊपर सौंप दी थी। इस वजह से गांव और आसपास के गांव के लोग सांस और दामाद के रिश्ते को गंदी नजरों से देखने लगे थे।
बेटे को जन्म देते समय आरती की मृत्यु हो जाती है। बेटी की मौत के गम से राजपाल की भी मृत्यु हो जाती है। लेकिन सबको यह शक था, कि सास के साथ मिलकर दमाद ने जहर देकर अपने ससुर की हत्या कर दी है।
बेटी और पति की मृत्यु के बाद भाग्यवती घर और कारोबार की जिम्मेदारी माधव के ऊपर सौंप देती है। धीरे-धीरे गांव के लोग और आसपास के गांव के लोगों की माधव और भाग्यवती से नफरत और बढ़ने लगती है। अब गांव के लोगों ने भाग्यवती और माधव को गांव की शादी समारोह आदि में भी निमंत्रण देना बंद कर दिया था।
माधव को जब भाग्यवती की बदनामी की खबर पता चलती है, तो वह घर छोड़कर जाने लगता है। तो भाग्यवती उसे अपनी कसम देकर रोक लेती है।
और जब उसका नाती पांच वर्ष का हो जाता है, तो अपनी सारी संपत्ति नाती और दमाद के नाम करके ऋषिकेश जाने से पहले गांव वालों से कहती है कि "मैं आज अपने घर की दहलीज लांग कर हमेशा के लिए ऋषिकेश जा रही हूं। आज मैं अपने जीवन और कर्म से पूरी तरह संतुष्ट हूं। क्योंकि मैंने इतना अपमान और अकेलापन बर्दाश्त करके अपने माता-पिता और अपनी ससुराल के मान सम्मान की रक्षा की है। और अपने ससुर की संपत्ति सही हाथों में सौंप दी है।" भाग्यवती की यह बात सुनकर पूरे गांव के लोग शर्मिंदा हो जाते है।
पृथ्वी सिंह बेनीवाल
27-Feb-2023 03:00 PM
शानदार
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Sushi saxena
26-Feb-2023 10:38 PM
Nice
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Alka jain
26-Feb-2023 02:23 PM
Nice
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