ग़ज़ल(ख़्वाहिश)
ग़ज़ल(ख़्वाहिश)
*ग़ज़ल*
मैं ख़्वाहिशों के दीप, जलाता चला गया,
मायूसियों को दिल से भगाता चला गया।।
कष्टों के जब भी बादल,छाते रहे गगन,
मैं बारिशों का जश्न मनाता चला गया ।।
आता रहा तूफ़ान था न फिर भी कोई ग़म,
मैं मुश्किलों से हाथ मिलाता चला गया ।।
राहें भी जिंदगी की, रहतीं रहीं कठिन,
मैं पत्थरों पे पाँव बढ़ाता चला गया ।।
आयी बला तो दोस्त भी,दिए न साथ तो,
मैं दुश्मनों को दोस्त बनाता चला गया।।
ख्वाहिशें ही ज़िंदगी की, राह सँवारें,
ख्वाहिशों को दिल में बसाता चला गया।।
आतीं तो हैं उदासियाँ,आतीं ही रहेंगीं,
उदासियों की रेख मिटाता चला गया।।
जब भी पड़ी है धूल, इज़्ज़त पे मुल्क़ की,
बेग़ैरतों को धूल चटाता चला गया ।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Renu
27-Feb-2023 11:15 PM
👍👍🌺
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
27-Feb-2023 06:11 AM
मात्रा भार का ज्यादा नहीं पता किन्तु अगर राह संवारे की जगह राहें संवारती करें तो शायद बेहतर लगेगा Read करने में sir
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
27-Feb-2023 06:08 AM
बहुत ही सुंदर सृजन
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