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आल्हा




आल्हा
      *पापियों का विनाश*(आल्हा/वीर छंद-16,15)
जब अपराधी बढ़े अवनि पर,उनका यहाँ हुआ संहार,
निश्चित कोई शक्ति है ऊपर,सुनती जो है भक्त-पुकार।
यद्यपि देती राजनीति यह,उनको सबल सुरक्षा-मंत्र,
फिर भी कलश पाप का फोड़े,अंत प्रशासन-विधि का तंत्र।

रावण-कंस-दुशासन ने भी,कभी किया था अत्याचार,
कोई सत्ता थी जो आकर, उनका  किया  शीघ्र संहार।
कुछ भी नहीं समय से बढ़कर,होता समय बड़ा बलवान-
उचित समयआने पर ही तो,जग में आते हैं भगवान।।


सतयुग-त्रेता-द्वापर का है,प्राप्त विश्व में उचित प्रमाण,
फूटे अघ-घट सकल काल के,हुआ विश्व का तब कल्याण।
कलियुग में भी असुर बहुत हैं,करो न इनकी तुम परवाह-
अंत है होता इनका निश्चित,पकड़ो सच्चाई की राह।।

आओ मिलकर सभी सवाँरें,रहे समय की यही पुकार,
मदद सदा शासन की करके,रोकें सब जन अत्याचार।
प्रेम-भाव-सौहार्द अमल कर,करें विनाश अघ-पाप सभी-
एक-एक को चुन-चुन मारें,समझ के दुश्मन-चाल अभी।।

मात्र निदान एकही इसका,होए नहीं जगत में पाप,
रक्तबीज सा यह है बढ़ता,अब न अंकुरित हो संताप।
चले 'विकासी'चाल यहाँ जो,उसका करना अभी विनाश-
राजनीति का खेल घिनौना,इसका करना पर्दाफाश।।

समय-समय पर होता रहता,पाप-पुण्य का ऐसा खेल,
यह है कुदरत खेल-तमाशा,तम-प्रकाश,सुख-दुख का मेल।
रहें बिठाते काल संग हम,यदि अपना संबंध  मिठास,
सदा रहेगी क़ायम जग में,शांति और सँग हर्षोल्लास।।


            ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
               ९९१९४४६३७२


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2 Comments

Muskan khan

28-Feb-2023 08:12 PM

Nice

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Renu

28-Feb-2023 05:39 PM

👍👍🌺

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