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बेबी...लेट मी किल यू ! ( चैप्टर - 5)

चैप्टर - 5


छः महीने पहले........ न्यू यॉर्क 

नाईट हैवन बार ( काल्पनिक नाम ) 

बार के अंदर डिस्को से जोरो से आती आवाज और लोगो की चहल पहल।
                     डांस फ्लोर पर , पसीने और शराब में डूबे टीन एजर्स मदमस्त नाच रहे थे किसी को ना अपनी चिंता थी ना किसी और की , ना घर का ख्याल, ना कपड़ो का, बस एक दूसरे के साथ मस्ती करते कुछ अमीर बाप की बिगड़ी औलाद अपनी कहने को उनकी नज़र में " आम सी जिंदगी " जी रहे थे वहीं बार के दूसरी ओर बार काउंटर था जिसमें लोग नाच कर जब थक जाए तो अपना गला तर करने आ जाते , तो कुछ अपनी निजी जिंदगी के गमो ,और ऑफिस की चिंता से मुक्त होने के लिए तो चार घुट तो एक ही सांस में पी ही लेते , वहीं बार के सामने सामने पड़ी कुर्सी पर एक आदमी मदहोश सा पड़ा हुआ था और बार बार सामने खड़े बार काउंटर में शराब देने वाले आदमी पर चिल्लाता और पैसे देता की उसे और शराब दी जाए वो भी शायद उन्हीं लोगो में से था जो अपनी पूरे सप्ताह की थकान मिटाने आया था। बार के मालिक को बुलाया जाता है आखिर वो इंसान रुक नहीं रहा था और साथ में उसकी हालत भी ऐसी नहीं थी की वो एक और गिलास शराब का पी पाए मगर फिर भी वो मांग रहा था। बार का मालिक आता है तो उस इंसान को पुकारता है -" मिस्टर!!.... हेल्लो...!"
मगर कोई जवाब नहीं! अब को बेहोश हो चुका था।किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे तो बार का मालिक वहीं पर काम करने वाली एक वेट्रेस को बुलाता है -" हेय!!...धरा...कम हियर।"
बार मैनेजर मुझे बुलाया और उस लड़के को उसके कार तक पहुंचने को कहा। मैं भले ही बार में नाइट वर्क करती थी ,पर किसी भी मर्द को वो भी नशे के हालत में संभालना मेरे लिए भी चुनौती भरा काम था। जैसे तैसे मैं उस लडको को कंधे के सहारे उठाई...और बाहर पार्किंग एरिया में आई कि उसके बॉडी गार्ड्स और ड्राइवर दिखे।जिनके हाथो मैं इन्हे सौप दी। पर जब अंदर वापिस आई तो जहां ये बैठे थे उनकी एक फाइल गिरी दिखी मैं उठा कर पढ़ी तो पहली बार इनका नाम मुझे पता लगा रुद्राक्ष माहेश्वरी। मैं उस फाइल को अपने बैग में रख ली इस उम्मीद से कि अगले रात मैं उन्हे दे दूंगी। 
अगली रात रुद्र वापिस आए शायद हर जगह फाइल को खोज आखिरी उम्मीद लिए बार में वापिस आए थे। वो बार के मालिक से बात कर रहे थे और गुस्से में पूरे बार का छान बीन करवाने की बात कर रहे थे कि मैं वो फाइल उनके आगे कर दी।
" ये आप भूल गए थे!" 
रुद्र फाइल लेकर उसमे अपने जरूरी कागज देखने लगते है ,उसमे रखा एक करोड़ का चेक भी सही सलामत था। रूद्र काफी इंप्रेस होते है और मुझे इनाम के तौर पर कुछ पैसे देने लगते है।पर मैं मना कर दी लेने से। 
" नो सर। भले ही मैं बार में काम करती हू पर सिर्फ अपनी मेहनत की कमाई लेना ही पसंद है मुझे!" 

रूद्र मुस्कुराए और मुझसे बोले - " तुम स्टूडेंट हो? " जिस पर मैं उन्हे बताई कि मैं ग्रेजुएशन लास्ट इयर की स्टूडेंट धरा गोश्वामी हू। हमारे बीच काफी बात हुई उस रात....वो मेरे फैमिली के बारे में भी पूछे ,क्या बताती बस एक भाई ही था मेरे पास जिसके पैरो के इलाज के लिए मैं बार तक में काम करती थी। रूद्र मुझे अपने घर में कुक की जॉब दे दिए जब तक वो यहां न्यू यॉर्क में होंगे मैं उनके यहां घर का सारा काम भी करूंगी जिसके वो अच्छे पैसे दे रहे थे मैं पागल हां बोल दी। 
फिर अगले दिन मैं उनके विला गई जहां वो ठहरने वाले थे। सर्वेंट्स बताए वो सो रहे मैं जल्दी से किचन में जाकर नाश्ता तैयार करने लगी 

रूद्राक्ष जैसे ही नीचे आता है वो धरा को डाइनिंग टेबल पर नाश्ता लगाते देख मुस्कुराते हुए कहता है - " हम्मम इम्प्रेसिव! तुम सुबह जल्दी आई भी और अपना वर्क चालू भी कर दी। बट कॉलेज तुम्हारे..?" 

" मुझे डिजर्टेसन सबमिट करना है जिसके लिए एक महीने का वक्त मिला है। मैं अब रात में बैठ उसे लिख सकती हू!" 

रूद्र डाइनिंग टेबल पर बैठ नाश्ता करने लगता है धरा इंडियन नाश्ता ; आलू का पराठा और चाय बनाई थी। रूद्र उस पराठे को खाकर नम आंखों से धरा को देख कहता है - मेरी मां मेरे लिए हमेशा ऐसे ही पराठे बनाती थी!" 

उस पल मुझे समझ आया शायद इनकी मां उनसे दूर जा चुकी है। यूं ही रोज रुद्र के सारे काम करते करते उनसे अच्छी मेल जोल हो गई। वो डील के लिए अधिकतर मीटिंग पर जाते ,और  मैं घर के काम कर अपनी पढ़ाई कर लेती और बीच बीच में भाई की हालत देखने चली जाती। पर साथ रहते रहते एक दूसरे की आदतों से इतने वाकिफ हो गए कि एक पल के लिए रूद्र को मैं या मुझे वो नही दिखते तो दिल बेचैन हो जाता। धीरे धीरे दस दिन बीत गए थे, बीच में रूद्र का मेरी केयर करना , कभी कभार मैं सोफे पर सो जाती तो वो गेस्ट रूम में सुला देते , इनकी हर आदत पसंद आने लगी थी मुझे। एक दिन जब मैं कॉलेज फेयर वेल के लिए दोस्त से ड्रेस की बात कर रही थी तो रुद्र मेरी बात सुन लिए। मैं अपने दोस्त से बोली कि कोई भी ड्रेस पहन चली जाऊंगी पार्टी में , क्या फर्क पड़ता है। अभी मुझे अपने भाई के इलाज के लिए पैसे जुटाने थे। 
जब रात में मैं खाना लगा रही थी रूद्र घर आए और मेरे सामने एक बैग आगे किए। 

" इसमें क्या है रूद्र..?" 

" देख लो....तोहफा और तुम ना नही कह सकती!" 

मैं जब उस तोहफे को देखी तो दंग रह गई। इतनी महंगी ड्रेस...? मैं मना करने लगी पर रूद्र मुझे मना लिए। 

" बस कुछ दिनो में मैं इंडिया जा रहा, एक दोस्त का प्यार समझ ही एक्सेप्ट कर लो!" 

मैं रुद्र के दूर जाने की बात से सहम गई और नम आंखों से उसे देखने लगे। वो मुझे अचानक से गले से लगा लिया। और अपने प्यार का इजहार कर दिया।
" आई लव यू धरा....बहुत प्यार करता हू तुमसे। " 

मैं भी उनके प्यार में पिघल गई और सारी दिल की बाते कह दी। रुद्र के कहने पर मैं वो ड्रेस ट्राई की और उनके सामने आई। 

रुद्र जैसे ही धरा को देखा उसका दिल जोरो से धड़कने लगा। 
" कैसा है..!" धरा नजरे नीची किए रुद्र से पूछती है। रुद्र उसका हाथ पकड़ अपने करीब कर उसके होंठो पर होठ रख देता है। धरा के हाथ रुद्र के मजबूत कंधो पर चले जाते है और रुद्र का हाथ धरा के पीठ और कमर पर होता है। दोनो एक दूसरे में इतने खो जाते है कि किस करते करते बेड रूम तक आते है और रुद्र धरा पर अपना प्यार बरसाने लगता है। कुछ घंटो बाद धरा की वो ड्रेस और रुद्र के कपड़े जमीन पर पड़े होते है और दोनो एक दूसरे की बाहों में लिपटे हुए होते है। 

धरा की बाते सुन सभी घर वाले हैरान होकर रूद्राक्ष की ओर देखते है रूद्राक्ष गुस्से में कहता है - " पागल हो.... रूद्राक्ष माहेश्वरी तुम्हारी जैसी लड़की को मुंह लगाएगा?" 

" रूद्राक्ष...! ये तरीका है किसी लड़की से बात करने का?" जगत नारायण जी गुस्से में चीखते है। 

धरा रोते हुए जमीन पर गिर जाती है और सिसकियां भर कहती है - एक बार नही कई बार रुद्र मेरे करीब आए....और दो हफ्ते बाद जब मुझे प्रेगनेंट होने  की खबर लगी मैं रुद्र के विला गई पर वो बंद था। मैं रुद्र को कॉल पर कॉल की पर वो पिक अप नही किए। और चौबीस घंटे बाद रुद्र का कॉल आया कि वो फ्लाईट में थे और इंडिया पहुंच गए है। मैं खुश हुई कि रुद्र मुझे भूले नहीं मैं उन्हे पापा बनने की न्यूज दी तो उनका बस इतना कहना था कि एबोर्सन करवा लो....क्युकी दादी मेरा रिश्ता तय कर चुकी है। और मैं परिवार के खिलाफ नही जा सकता। भूल जाते है हम दोनो इस रिश्ते को। 
मेरे तो पेरो तले जमीन खिसक गई। उसके बाद मैं कई बार रुद्र से बात करने की कोशिश की पर वो तंग आकर नंबर ही चेंज कर लिए ,बस मुझे कुछ नही सूझा। खुद को मारने के लिए जहर खाई पर बदकिस्मती देखिए मेरा बच्चा मर गया मैं ही नही मरी डॉक्टर मुझे बचा लिए। फिर मेरे पास न रुद्र न ही उनका अंश....कुछ रास्ता न बचने पर मुझे इस तरह शादी में आकर धोखे से शादी करना पड़ा चाचा जी..... आईएम सॉरी....पर मैं क्या करती..? 
धरा बेतहाशा फूट फूट कर रोने लगती है ,चाची जी तुरंत उसके आंसू पोंछने लगती है। 
" नही बेटा , रोओ मत देखो अब तुम रुद्र के पास ही हो उसकी पत्नी बनकर!" 

" चाची आप इस झूठी लड़की के जाल में फंस रही..?" 

" रुद्र अब तो हमारी शादी हो गई....फिर ये सब नाटक क्यों? क्या आप मेरा प्यार और मुझे भूल गए?" 

" अरे जब जानता ही नहीं तुम्हे तो कैसे भूलूं या याद करू?" रुद्राक्ष बौखलाया सा चीखें जा रहा था तब तक जब तक जगत नारायण जी अपनी जगह से उठे और बोलना शुरू नही किए।अब जगत नारायण जी बोल रहे थे और सब सुन रहे थे उनकी बात सुन पूरे घर वालों के होश उठ गए रुद्राक्ष के तो गले से सांस ही गायब हो गई क्यूंकि उन्होंने कहा था -" तुम इसी घर में रहोगी , रुद्राक्ष के पत्नी के रूप में पूरे हक के साथ और वो हक तुमसे रुद्राक्ष भी नही छीन सकता।" जगत नारायण जी ने अपनी भारी आवाज़ में अपना आखरी फ़ैसला सुना दिया। और इस फ़ैसले से दक्षता की आंखों में चमक आ गए वहीं रुद्राक्ष को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके ही चाचा ने उसके खिलाफ़ फैसला लिया ,मगर क्यों। 

" शुक्रिया....शुक्रिया चाचा जी....मैं आपका...." - धरा रूंधे गले से जगत नारायण जी के पैर छू कर उनका आभार प्रकट कर रही होती है की तभी पीछे हट जाते है और उसे रोक कर बोलते है -" पर....अगर हमे पता चला की ये सच सिर्फ नाटक है और आप यहां रुद्राक्ष को फसाने आई है तो हम आपको छोड़ेंगे नहीं।" 

धरा डरते हुए हां में सिर हिला देती है चाची जी के चेहरे पर चमक आ जाती है जगत नारायण जी का फैसला सुन क्योंकि कहते है न जिसके मन में छल नही होता उन्हे सारी दुनिया सच्ची लगती है वही रेणुका जी के साथ हो रहा था उन्हे धरा के आंसुओं की वजह से सारी बातें सच्ची लग रही थी। 

" आप मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते है, मैं बेकसूर हूं...!" रुद्राक्ष चीख चीख पर अपने बेकसूर होने की बात कर रहा था और रुद्राक्ष की दादी गुस्से में अपने बेटे को देख कहती है -" आज आप इस झूठी लड़की पर भरोसा कर बहुत बड़ी गलती कर रहे है नारायण!" 

" वो झूठी साबित नहीं हुई है ,और अगर रुद्राक्ष सही है तो साबित कर दे..." जगत नारायण जी वहां से जाते हुए कहते है -" हां!!....रुद्राक्ष को हमारा फैसला और हम गलत लग रहे तो आज से कोई हमारे फैसले को मत मानना और किसी की जरूरत नहीं हमे!" 

" नहीं.....भले ही आप मेरे चाचा है मगर मैने अपने पिता का दर्जा दिया है आपको , आपके बिना मैं कुछ नहीं आपका फैसला हम सबको मंजूर है मैं सबको दिखा दूंगा ये लड़की झूठी है।" रूद्राक्ष गुस्से में वहां से चला जाता है इसके जाते ही जगत नारायण जी भी अपने कमरे में जाते है मगर दरवाज़े पर रुक एक बार मुड़ते है और धरा को देख कहते है -" याद रखिएगा...अपने बेटे से ज्यादा भरोसा आप पर कर रहे , एक झूठ और आप जेल के अंदर।" 

" मैं आपको कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगी चाचा जी..!" धरा हाथ जोड़े हुए कहती है।जगत नारायण जी उदासी ने हां में सिर हिला अपने कमरे में चले जाते है और चाची जी धरा को संभालते ही इसके कमरे में ले जाती है। 

" हे ईश्वर!!....क्या होगा मेरे बसे बसाए परिवार का , जाने किसकी नज़र लग गई।" दादी परेशानी घबराहट से भगवान से प्रार्थना करने लगती है। 

इधर रुद्राक्ष का कमरा.... 

रुद्राक्ष के कमरे में चाची जी धरा को संभालते हुए लेकर आती है और उसे बिस्तर पर बिठा कर एक ड्रावर से दवा निकाल उसके हाथ पर दवा लगाने लगती है और जब जब दर्द से धरा की आह निकलती रेणुका जी की आंखो में भी दर्द आ जाता है। 

" बेटा !...ज्यादा दर्द हो रहा है क्या।" चाची जी प्यार से पूछ रही होती है उनका यूं प्यार से धरा से पूछना धरा की आंखे नम कर जाता है वो उन्हे गले से लगा लेती है। 

" क्या हुआ बेटी?" चाची जी धरा का सिर सहलाते हुए पूछती। 

" मां... मां..की याद आ गई।" धरा रेणुका जी से अलग होते हुए कहती है। 

" कोई बात नही बेटा..मैं भी तो तुम्हारी मां हु।" 

" सच में?" धरा मासूमियत से रेणुका जी से पूछती है उसकी मासूमियत देख रेणुका जी के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है -" बिलकुल बेटा।" 

दोनो बात ही कर रहे होते है कि रुद्राक्ष कमरे में आता है। 

" अब मैं चलती हु।" चाची जी वहां से जाने लगती है की रुद्राक्ष उन्हे रोक अपनी ओर मोड़ता है -" मेरी मां नाराज़ है अपने बच्चे से?" 

" तो बच्चे को इससे क्या फर्क पड़ता है।" रेणुका जी गुस्से से कहती है। 

" पड़ता है बहुत फर्क पड़ता है इस लिए अब मैं कुछ भी ऐसा नही करूंगा जिससे भी अपने को तकलीफ हो।" 

रुद्राक्ष की बात सुन रेणुका जी उसके सिर पर हाथ रख मुस्कुराते हुए वहां से चली जाती है और रुद्राक्ष उनकी मुस्कुराहट देख खुश हो जाता है मगर जब वो धरा को देखता है तो उसका गुस्सा वापस आ जाता है -" खुश होगी ना? इस बड़े से घर में रहने का मौका मिल रहा..?" 

" नहीं!...खुश हू कि अपने घर में रहने का मौका मिल रहा।" धरा एक प्यारी सी मुस्कान के साथ बिस्तर से खड़ी होती हुई कहती है।रुद्राक्ष अपने आंखो में प्यार लिए धरा के करीब आ रहा होता है धरा को हैरानी हो रही थी मगर वो अपने चेहरे पर उसे उजागर होने नही दे रही थी ,आखरी हार जो जाती। 

" वो रात जिसकी बात को तुमने...!"रुद्राक्ष प्यार से धरा को अपने पास लाकर उसे दूसरे ओर मोड़ उसके कंधे पर सिर रख कहता है और रुद्राक्ष का हाथ धरा के कंधे से होते हुए उसके हाथो से सरक उसके कमर पर आकर ठहर जाता है रुद्राक्ष के ठंडे हाथ धरा को अपने कमर पर बर्फ जैसे लग रहे थे वो एक पल के लिए सिहर जाती है और अपनी आंखे बंद कर लेती है और रुद्राक्ष की गर्म तेज़ सांसे अपने गर्दन पर महसूस कर रही होती है कि तभी रुद्राक्ष गुस्से में धरा के जले हुए हाथ को कस कर दबा देता है। 

" आह...!" धरा के मुंह से दर्द की वजह से आह निकल जाती है। 

" दर्द हो रहा है ना मुझे भी हो रहा है जब मेरे चाचा जी की नज़र में तुमने मुझे गिरा हुआ साबित किया , मुझे तो याद भी नहीं कौनसी रात ,तुम भी जानती है हम एक दूसरे से पहली बार मिल रहे ( धरा को धकेल ख़ुद से दूर कहता है जिससे बिस्तर पर गिर जाती है और चिंखते हुए ) क्यों झूठ बोल रही।" 

बिस्तर पर गिरी हुई धरा वापस से रूद्राक्ष के ओर मुड़ती है और खड़ी होकर रूद्राक्ष के गले में हाथ डाल उसके चेहरे कर प्यार से हाथ फेरती है -" मेरे प्यारे हॉट और अमीर सईयां जी.... हां!..झूठ है ये सब , अब?..क्या करेंगे अपने चाचा जी के पास मेरी शिकायत लेकर जाएंगे या नहीं नही अपनी उस ओवर स्वीट चाची उर्फ़ मां के पल्लू में छिप जायेंगे।" 

" तुम्हे मै छोडूंगा नहीं।" रुद्राक्ष धरा को ख़ुद से दूर कहते हुए कहता है। 

" पहले पकड़ तो लीजिए , और हां!....अगली बार मुझे धक्का देने से पहले सौ बार सोच लीजिएगा जब एक दिन में मैं आपके चाचा और चाची को अपनी ओर कर सकती हूं तो आगे क्या क्या करूंगी , एक बात और...कोई ये बात झुठला नहीं सकता की आप न्यूयॉर्क आए थे।" रुद्राक्ष के समाने अपने पैर पर पैर रखते हुए धरा बिस्तर पर बैठ कहती है। 

" मतलब तुम मेरा पीछा न्यूयॉर्क से कर रही।" 

" ना ना सईयां जी!....सिर्फ न्यूयॉर्क ही नहीं मैं आपका पीछे कब से कर रही अब तो ये मुझे भी नहीं मालूम।" 

" क्या चाहिए तुम्हे?" रुद्राक्ष गुस्से में धरा पर चीख कर बोला। 

" चाहिए तो बहुत कुछ पर टाइम आने पर बता दूंगी आखिर हक जो दिए है ( एक एक शब्द खींच कर बोलते हुए ) चा....चा....जी....ने...!" 

रुद्राक्ष गुस्से धरा के थप्पड़ मार देता है जिसके वजह से धरा के गालों पर झनझनाहट होने लगती लगती है वो गुस्से में अपनी जगह से उठती है और जाकर रुद्राक्ष के होंठो पर अपने होंठ रख देती है पहले तो रुद्राक्ष हड़बड़ा जाता है फिर उसे धक्का देकर ख़ुद से दूर करता है। 

" ये उसका बदला जो आपने मुझे कहा था कि तुम जैसी लड़कियों को मुंह भी नही लगता तो लीजिए लग गए मुंह।" और प्यार से एक फ्लाइंग किस रुद्राक्ष को देती है रुद्राक्ष गुस्से में वहां से चला जाता है और जाते जाते दरवाजे को इतनी जोर से पिटता है कि उसकी आवाज पूरे घर में गूंज जाती है वो गुस्से में भन्नाया सीढ़ियों से उतर रहा था कि तभी वो किसी से टकरा जाता है और जब वो गिरने वाला होता है तो सामने वाला इंसान उसका हाथ थाम उसे अपनी ओर खींच लेता है उसे देखते ही रुद्राक्ष उसे गले से लगा लेता है -" तू आ गया अवदान।" 

" नहीं!!..मैं तो न्यूयॉर्क से आई तेरी अजनबी दुल्हन हू।" अवदान रुद्राक्ष हो तंज कसते हुए कहता है। 

" अब शुरू मत हो जा ,मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है।" रुद्राक्ष विकृत सा मुंह बना कर कहता है। 

" जानता हु और यहीं साबित करने तो आया हु।" 

" जानता था एक तू ही है जिसे पूरा भरोसा है मुझपे।" रुद्राक्ष उदास सा बोला।उसकी हालत देख अवदान समझ जाता है वो अभी ठीक नहीं इस लिए वो बात पलटने लगता है -" मेरी छोड़ तू बता कहां जा रहा था तू इतनी जल्दी में?" 

" यार अम्मू आ रही बस उसे लेने जाना है।" रुद्राक्ष खुश होते हुए कहता है। 

" चल किसी बात से तो खुश है तो ठीक है तू जा हम रात में बात करेंगे।" अवदान उसके पीठ को थपथपाते हुए कहता है रुद्राक्ष हामी भर कर वहां से चला अवदान वहां से एक कमरे में चला जाता है और जब वो कमरे में पहुंचता है तो उसे किसी का कॉल आता है -" हां!.... हां....मॉम मैं पहुंच गया आप अपना ख्याल रखिए और हां!.... दवा याद से खा लीजिए वरना मैं बात नही करूंगा आपसे।" कुछ देर अपनी मॉम से बात कर अवदान फोन काट देता है जाकर नहा कर वापस आकर बेड पर लेट जाता है जैसे ही वो अपनी आंखे बंद करता है तो उसके आंखो के सामने एक लड़की का चेहरा और उसकी बड़ी बड़ी नम आंखे थी उसके चेहरे पर किसी ने हाथ रख रखा था।उसकी पलके पल पल झटक रही थी और घबराहट उसके आंखो में साफ दिख रहा था , उस लड़की का मुस्कुराता चेहरा अवदान के आंखो के सामने आते ही वो आंखे बंद किए हुए मंद मंद मुस्कुराने लगता है। और आंखे बंद किए ही खुद से कहने लगता है-" आखरी बार तुम्हे न्यूयॉर्क में देखा था  , जाने कहां चली गई तुम....जल्दी मिल जाओ मुझसे।"

जारी है..!!!

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2 Comments

Sushi saxena

14-Mar-2023 08:39 PM

शानदार

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Sant kumar sarthi

06-Mar-2023 12:33 PM

शानदार भाग

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