Tania Shukla

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हार्टलेस

ओम जय जगदीश हरे

स्वामी जय जगदीश हरे 

भक्त जनों के संकट..!

दास जनों के संकट..!

क्षण में दूर करें .......!

बोलो नारायण भगवान की जय 

बाके बिहारी की जय……….!

राधे राधे..!


घर में कुल पांच लोग है वो भी सब एक साथ आरती पर नहीं आ सकते, पता नहीं कब अक्ल आएगी तुम्हारे बच्चो को, अरी कुछ तो सीखा उनको बड़े हो गए हैं अब… अम्मा अपनी आवाज़ में अपनी बहु को सुना रहीं थीं, 

और ये सोनल और मीनल कहां है, लड़कियों का इतनी देर तक सोना शोभा देता है क्या ?


सरस्वती की सास उस पर भगवान की आरती के साथ साथ सुना रही थी, वो ये भी नहीं देखती थीं के अभी आरती बची हुयी है, उनको बस अपने बोलने से मतलब था,


सरस्वती ने सर झुका लिया था, सरस्वती को भी अब आदत पड़ गई थी ये सब सुनने की क्योंकी कितने साल बीत गए थे इस घर में, कितना कुछ बदल गया 

मगर ना सास की आदत बदली और न ही पति का व्यवहार, 

हां वो खुद जरूर बदल गई थीं उसने खुद को उस घर के हिसाब से ढाल लिया था,.. 


प्रणाम अम्मा, तभी सरस्वती का बेटा बालों पर हाथ फेरता हुआ बाहर निकला.. 

खुश रहो देवा,, भगवान तुम्हे तरक्की दे, आ मेरे पास तो आ जरा तेरा माथा चूम लूं अम्मा ने लाड से कहा, और अपने पास बुला लिया.. 


दादी ने अपने पोते का माथा चूम लिया और पोतिया दूर खड़ी देखती रही वो जानती थी अम्मा का प्यार सिर्फ उनके भाई के लिए ही था, वो उनको नहीं मिलने वाला था, और ना ही पहले कभी मिला था, 


मांँ मुझे हॉस्पिटल जल्दी जाना है आप मेरा नाश्ता लगा देगी प्लीज.. देवा ने अपनी माँ से कहा, 


हां बेटा नाश्ता तैयार है तुम आ जाओ तैयार हो कर सरस्वती ने कहा,


ओके मां, इतना बोल कर देवा अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा, 


तभी अम्मा को याद आया, अरे सुनो देवा, आज शाम जल्दी घर आ जाना कुछ मेहमानों को बुलाया है मैने,,


अम्मा, अगर आप फिर से किसी लड़की वालो को बुलाना चाहती हैं तो ,, मेरा जवाब आज भी वहीं है, मैं शादी नहीं करूंगा 

और आप बार बार यू किसी को भी मत बुलाया करो देवा ने उलझें हुई आवाज़ में कहा, 


हे भगवान, तो क्या तू ऐसे ही कुंवारा रहेगा, मुझे तेरी बहू का मुंह तक देखना नसीब नहीं होगा अम्मा ने जल्दी से कहा, 


दादी आप कभी नहीं मानेगी, मैं जा रहा हूं मुझे देर हो रही है


बलवीर राय चौधरी का परिवार बनारस की खूबसूरत गलियों वहां के दिलचस्प घाटों की तरह लाजवाब और वहां के बनारसी पान जैसा मदमस्त कर देने वाला आशा वादी और खुशहाल परिवार था, वैसे तो बालवीर राय चौधरी नेक दिल और दयालु प्रवृत्ति के इंसान थे मगर अपने रीति रिवाजों और सिद्धांतों के एक दम पक्के थे बेटा हो या बेटी यहां तक की सिद्धांतों के लिए वो अपनी मां की भी नहीं सुनते थे।

वे एक अच्छे खासे व्यवसाई थे,  और देवशीष की मां कुशल‌ ग्रहणी थीं, हमेशा चेहरे पर शांति मगर मन में हमेशा डर कि पति परमेश्वर नाराज न हो जाए, 

तीन भाई बहन में देवाशीष सब से बड़ा था उस से छोटी दो बहनें सोनल और मीनल दोनों में एक ही साल का अंतर होने की वजह से लगभग बराबर ही है और सोनल कमज़ोर थी बचपन में इस लिए दोनों हमेशा एक ही कक्षा और एक ही स्कूल में पढ़ी है ज्यादातर लोग उन दिनों को जुड़वा ही समझते थे 


गुड मॉर्निंग डॉक्टर साहब नर्स रोज़ी ने देवाशीष का अभिवादन किया,


गुड मॉर्निंग रोज़ी, देवाशीष ने स्माइल के साथ गुडमॉर्निंग का जवाब दिया,. 


यह रहीं आपकी कॉफी सर,, घड़ी की सुइयां इधर उधर हो सकती है मगर आप कभी लेट नहीं हों सकते हैं,.. 

और ना तुम्हारी कॉफी कभी लेट होती है रोजी, देवाशीष ने कहा, और कॉफी का मग उठा लिया., 

दोनों मुस्कुरा दिए 

ओके अब चलो पेशेंट को भेजो इंतजार कर रहे होंगे..


जी सर, हामी में सर हिलाती हुयी रोज़ा बाहर निकल गयी.. 


देवाशीष अपने हॉस्पिटल में मरीजों को देखने में व्यस्त हो गया कोई ध्यान ही नहीं रहा की दादी ने शाम को जल्दी घर बुलाया था जब वह हॉस्पिटल में होता था उसको टाइम का पता नहीं चलता था वो अपने काम में पक्का था, और दिल से काम करने वाला इंसान था, 


देवाशीष एक मरीज़ को देख रहा था तब उसका फ़ोन वाइब्रेट होने लगा,  देवाशीष ने फोन उठा कर देखा तो दादी का फोन था 

ओह मैं तो भूल ही गया था कि आज दादी ने घर पर मेहमानों को बुलाया है और अब दादी मुझे बहुत डांटने वाली है 


इतनी ही देर में दुबारा फोन वाइब्रेट करने लगा था, 


हेलो दादी,,, जी ध्यान से निकल गया था और मैने आपसे सुबह ही बोल दिया था कि मुझे किसी से नहीं मिलना,...... ओह्ह प्लीज दादी.. ओके, ओके दादी आप गुस्सा मत करो आ रहा हूं मैं.. 


देवाशीष ने टाइम देखा और रोज़ी को बुलाया, रोज़ी प्लीज देखो डाक्टर सुमन आई की नहीं अभी तक, मुझे अब निकलना होगा, घर पर कोई फंक्शन हैं..


जी सर वो आ गई है नीचे के फ्लोर पर विजिट कर रही हैं रोज़ी ने जल्दी से बताया,.  

ओह गुड, ओके तब अब मैं निकलता हूं, देवाशीष ने अपना बैग उठाया और जल्दी से बाहर निकल गया,.


डॉक्टर साहब, डॉक्टर साहब,,,, तभी पीछे से लगातार किसी की आवाज ने देवाशीष के कदम रोक लिए 


जी कहिए, देवाशीष ने उनको पहचानने की कोशिश की, 


आपका बहुत बहुत शुक्रिया डॉक्टर साहब आपने मेरे बेटे की जान बचा ली, आपका यह अहसान मैं जीवन में कभी नहीं भूल सकती


पर आप है कौन ? और किसकी बात कर रही है देवाशीष ने जल्दी से पूछा,.. 


जी डॉक्टर साहब मैं , दीपक की मां हूं


दीपक ???  दिमाग पर जोर डालते हुए देवाशीष ने याद करने की कोशिश की। ओह वो,  छोटा बच्चा जो कुछ दिन पहले सड़क पर बेहोश हो गया था और मैं उसे अपने हॉस्पिटल ले आया था


जी साहब ,, दीपक की मां हाथ जोड़े खड़ी थी  वो कुछ देना चाहती थी मगर संकोच की वजह से दे नहीं पा रही थी.. देवाशीष समझ रहा था,


देखिए आप परेशान मत होइए यही तो मेरा काम है  मैने बस अपना फर्ज निभाया है


जी आज के जमाने में बिना पैसों के कोई किसी की मदद नहीं करता हम गरीब लोग है साहब आपको ज्यादा कुछ नहीं दे सकते मगर मैं आपके लिए यह छोटा सा तोहफा लाई हूं इस उम्मीद से की आपको पसंद आएगा

अपने हाथ में पकड़े एक लिफाफे को देवाशीष की तरफ बढ़ा दिया 


जी शुक्रिया आपका ,,देवाशीष ने उसे लेते हुए कहा 

इतनी देर में फिर से फोन पर वाइब्रेशन होने लगा था, देवाशीष ने बिना देखे फ़ोन को जेब में रख लिया, उसको पता था के दादी का ही फ़ोन होगा, 


अच्छा अब मैं चलता हूं, देवाशीष ने उनसे कहा, 


दादी भी ना ,,, अपनी कार में बैठते हुए देवाशीष उदास हो गया उसे पता था आज फ़िर वो लड़की को मना कर देगा और फिर तीन दिनों तक घर में यहीं सब कलेश चलता रहेगा।


*******



घर का माहौल खुशनुमा था सोनल और मीनल अपनी मां के साथ रसोई में हाथ बटा रही थी दादी, देवाशीष के पिता जी और कुछ मेहमान घर की बैठक में बैठे हुए थे, बाहर गली में बच्चों के खेलने की आवाज़ आ रही थी, जो आस पास के बच्चे खेल रहें थे और शोर मचा रहे थे,.. 


एक खूबसूरत सी लड़की हल्का गुलाबी कुर्ता पहने सिर पर ‌पल्लू डाले सर झुकाए बैठी थी उसके पास उसकी मां थी शायद दूसरे सोफे पर उस लड़की के पिता और भाई बैठे हुए थे बीच में रखा हुआ टेबल पूरी तरह से घर के बनाए हुए नाश्ते से भरा हुआ था देवाशीष की मां सबको चाय दे निकाल कर देने लगी 

आप भी बैठिए ना भाभी जी लड़की की मां ने सरस्वती से कहा  मगर वो संकोच बस बैठ नहीं पा रही थी वहीं उसकी सास पति और बाहर के दो लोग थे और उसको इजाजत नहीं थी कि वह बाहर के लोगों के सामने बैठ सके.. 


यह नहीं बैठ सकती रसोई में बहुत काम है ना वह काम भी तो देखना है ,,, दादी ने बात को संभालते हुए कहा, 

सरस्वती का वहा रुकने का मन था वो भी चाहती थी कि जो लड़की उसकी बहू बनने वाली है उस से कुछ बात करे कुछ पूछे ,कुछ उसे जाने.. वो भी चाहती थी कि उसकी राय भी पूछी जाए 

मगर आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं था जो आज होता जो उसकी राय पूछी जाती या उसकी राय किसी के लिए कोई मायने रखती ।


बस वो अपने मन की बात मन में ही ही मे दबा कर चेहरे पर मुस्कान लिए रसोई में आ गई 


उसकी आंखो में थोड़ी सी नमी आई पर उस ने उसे बाहर नहीं आने दिया, इतने शुभ दिन वो आंखे नम कैसे कर सकती थी भला, उसके बेटे की शादी की बात थी क्योंकी दादी के साथ साथ खुद उसको भी इस बात की जल्दी रहती थी की उसका बेटा शादी करे.. 


उसकी उदासी को उसकी बेटी सोनल ने पहचान ही लिया जो बहुत समझदार थी, आखिर एक मां और बेटी का रिश्ता ही ऐसा होता है, वह अपनी माँ की ख़ामोशी को अच्छे से जानती थी, 

दोनों ही एक दूसरे की मन की बात बिना कहे समझ लिया करती थीं… 





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6 Comments

Natasha

14-May-2023 08:11 AM

Nice

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kashish

11-Mar-2023 02:06 PM

nice

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Abhinav ji

11-Mar-2023 08:56 AM

Very nice

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