बचपन
*बचपन की अद्भुत कहानी*
बचपन की अद्भुत कहानी,
किसी ने न जानी।
इसी में भगवान बसे-
इसी में भगवान बसे।।
कौन है अपना,कौन पराया,
जलन-द्वेष का इसपे न साया।
मिलता है सबसे गले,
नफ़रत न इसमें पले।
इसी में रहमान बसे-इसी में भगवान बसे।।
बचपन की बातें लगतीं सुहानी,
लगतीं नयी पर बातें पुरानी।
बचपन कभी नहीं भूले,
चाहे हों जितने झमेले।
इसी में गुणवान बसे-इसी में भगवान बसे।।
निर्मल पानी जैसा बचपन,
कोमल वाणी जैसा बचपन।
रहती है इसमें मधुरता,
रहती नहीं इसमें कटुता।
इसी में ईमान बसे-इसी में भगवान बसे।।
बचपन चाहे अमीरों वाला,
गरीबों वाला,फकीरों वाला।
गरीबी न इसको सताए,
अमीरी न इसको भाए।
इसी में धनवान बसे-इसी में भगवान बसे।।
मज़हब सबका इसका मज़हब,
फ़साना तो इसका अजब-गज़ब।
बचपन की भाषा निराली,
फ़रिश्तों वाली।
इसी में सब ज्ञान बसे-इसी में भगवान बसे।।
बचपन यूँ तो होता है बचपन,
लेकिन सच में होता है पचपन।
होता बहुत यह सयाना।
मेरे मन ने जाना।
इसी में इंसान बसे-इसी में भगवान बसे।।
इसी में भगवान बसे।।
©डॉ.हरि नाथ मिश्र
9919446372
Haaya meer
09-Mar-2023 05:46 PM
Very nice
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Sachin dev
09-Mar-2023 04:40 PM
Nice
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