काव्य-कुंज
गीत*काव्य-कुंज*
काव्य-कुंज में कवि-मन कुहके,
हो सम्मोहित रसपान करे।
भाव-पुष्प जो विविध खिले हैं-
उनपर नूतन नित गान करे।।
काव्य-कुंज में..............।।
बिना भाव-चिंतन के कविता,
संभव क़लम नहीं करती है।
हृदय-सिंधु में भाव-उर्मि ही,
उठकर नित लेखन करती है।
कवि-मन हो अति हर्षित-प्रमुदित-
सृजन भी अतीव महान करे।।
काव्य-कुंज में.........।।
ध्यानावस्थित होने पर ही,
नेत्र तीसरा भी खुलता है।
भावों का आवेग प्रखर हो,
मन-रस में ही आ घुलता है।
मधुर भाव अति शीघ्र उमड़ कर-
अक्षर-कृति का अवदान करे।।
काव्य-कुंज में...........।।
भाव-तरंगें अति स्वतंत्र हों,
प्रबल उमड़तीं रहतीं पल-पल।
प्रखर भाव भी तब कवि-मन को,
देता सदा सहारा-संबल।
कवि भी तो तब हो सतर्क मन-
अति सक्षम गीत- विधान करे।।
काव्य-कुंज में.............।।
कभी मुदित हो,कभी दुखित हो,
कवि-मन का भावालय बनता।
भाव-सिंधु का कर अवगाहन,
पवित्र भाव-देवालय बनता।
चिंतन-मनन-साधना के बल-
कवि मुक्ता-स्वर निर्माण करे।।
काव्य-कुंज में..............।।
काव्य-कुंज की ले सुगंध वह,
गीतों को भी महकाता है।
पा प्रसाद सुर-देवी से वह,
भाव-सुरभि नित फैलाता है।
सृजन-भाव में डूब-डूब कर-
ज्ञान-सरित में नहान करे।।
काव्य-कुंज में....…........।।
धन्य कलम तेरी भी कविवर,
रवि-सीमा को भी पार करे।
अप्रत्याशित रेख पार कर,
लेखन-सुकर्म साकार करे।
अद्भुत रचना दे इस जग को-
सुर-देवी का सम्मान करे।।
काव्य-कुंज में.............।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Dr. Arpita Agrawal
12-Mar-2023 12:10 PM
बेहतरीन सृजन
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Gunjan Kamal
12-Mar-2023 09:48 AM
बहुत खूब
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Abhinav ji
11-Mar-2023 08:28 AM
Very nice 👍
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