प्रतीक्षा
.................... .......प्रतीक्षा........
प्रतीक्षा रहती है प्रियजन की और प्रतीक्षा सुफल परिश्रम की, समय से देर हो जाये प्रिय को तो होतीं उद्विग्न घड़ी प्रतीक्षा की ।
वस्ल की घड़ियां आएं निकट और कभी कोई अड़चन आ जाये, पागल कर देती जन को वह जालिम घड़ी प्रतीक्षा की।
कार्यक्षेत्र मे जा कर सब जन कठिन परिश्रम करते हैं, अपने और परिवार हेतु वो श्रम से धनोपार्जन करते हैं।
अपने फरिश्रम-फल का उनको प्रबल प्रतीक्षा रहती है, आशाएं उन परिवारों की श्रम-साधक पर जा टिकती हैं।
परिश्रम-फल मे देरी हो तो सभी विकल हो जाते हैं, वादे जो कर बैठे थे वो...
Sachin dev
17-Mar-2023 09:13 PM
Nice
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