अमर कोख
पति का,सुत का,पथ देखा था,
कुछ दुखियारी आँखों ने।
किंतु मिला जो गौरव उनको-
पाया कभी न लाखों ने।।
अमर हो गई मातु कोख वह,
जिसने वीर तनय जन्मा।
धन्य माँग-सिंदूर हुआ वह,
कभी नहीं जो है भरमा।
पत्नी-प्रेम,ममत्व मातु की-
भरीं उड़ाने पाँखों ने।
पाया कभी न लाखों ने।।
पिता वृक्ष,सुत शाखा दोनों,
वतन-चमन-फल-डाली हैं।
नेह-नीर से है जो सींचा,
पत्नी-माता माली हैं।
माली रहे सुरक्षित प्रति-पल-
दिए प्राण तरु-शाखों ने।
पाया कभी न लाखों ने।।
कभी क़ैद हो हुए बंद यदि,
अरि के कारागारों में।
सहे दुसह दुख अगणित वे सब,
मुदित चले अंगारों में।
दिया साथ जब तोड़ दिए वे-
दुश्मन-जेल-सलाखों ने।
पाया कभी न लाखों ने।।
युद्ध-भूमि में हो शहीद जब,
आते लौट ठिकानों पर।
शपथ संग तन लिपट तिरंगा,
दे सबूत बलिदानों पर।
लिखी सदा है गौरव-गाथा-
बुझी हुई उन राखों ने।
पाया कभी न लाखों ने।।
पति का,सुत का,पथ देखा था-
कुछ दुखियारी आँखों ने।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
९९१९४४६३७२
Sachin dev
05-Apr-2023 11:11 PM
Nice
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ऋषभ दिव्येन्द्र
05-Apr-2023 05:04 PM
एकदम जोरदार
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