Vipin Bansal

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कविता = अदाकारी

⭐ कविता = ( अदाकारी )


सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!
मेरे ख़ूॅं में नहीं ग़द्दारी !
मिली विरासत में ख़ुद्दारी !!
अब चला दौर मक्कारी !
मेरी यही है लाचारी !!
सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!

रूप बदलना गर जो आता !
मैं भी सबको खूब लुभाता !!
इस रंगमंच के सब हैं खिलाड़ी !
हम तो निकले यार अनाड़ी !!
आ न पाई ये कलाकारी !
इस कला के सब हैं पुजारी !!
सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!

रंग बदलना न मुझे आया !
मौसम माफ़िक़ न ढ़ल पाया !!
रंग दुनिया का न चढ़ पाया !
रंग में अपने न रंग पाया !!
रंग बदलती दुनिया सारी !
रंगों की सब पर छाई ख़ुमारी !!
सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!

दोहरी ज़िंदगी न समझ आई !
उनकी लिखावट न मेल खाई !!
बनावट से बनाई मैंने दूरी !
थोड़ी जी पर जी ली पूरी !!
खुली किताब रही हमारी !
सबने पढ़ ली बारी - बारी !!
सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!

सच का मुझको रोग लगाया !
झूठ बोलना क्यों न सिखाया !!
सच से अब दिल घबराया !
सच से ही मैं हुआ पराया !!
झूठों की दुनिया रह गई सारी !
झूठ के आगे सच्चाई हारी !!
सीख न पाया मैं अदाकारी !
मेरी गलती मुझ पर भारी !!

       विपिन बंसल

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2 Comments

बहुत ही सुंदर सृजन

Reply

Vipin Bansal

19-Mar-2023 11:52 AM

आपका तहे दिल से आभार शुक्रिया

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