गांव
गांव
बदले बदले गांव के मंजर नजर आते हैं
मेरे गांव धीरे धीरे शहर हुए जाते हैं।
कच्चे मकान टूट गए खपरैल की छत के
लोगों के घर मजबूत हुए सीमेंट की छत से।
ना चौपाल की बैठक ना हुक्कों का गुड़गुड़ाना
हर एक हाथ में मोबाइल तरक्की का है जमाना।
शाम ढले घरों से अब निकलता नहीं धुआं
चूल्हों की जगह रसोई में गैस का राज है हुआ।
मवेशी के घुंघरुओं की झंकार गुम हुई
मोटर साइकिलों की जब से भरमार है हुई।
खेतों को जोतते हल बैल किस्सों में हैं मिलते
जिस ओर देखिए ट्रैक्टरों के शोर हैं उठते।
दिल के भोले और सीधे सच्चे जो कभी थे
तरक्की की आंधी में कहीं खो गए हैं वो।
गांव के लोगों में अब वो पहले सी बात नहीं है
शहरों की हवा जब से गांवों में बही है।।
आभार – नवीन पहल –१९.०३.२०२३ 😊🙏
# प्रतियोगिता हेतु
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ऋषभ दिव्येन्द्र
20-Mar-2023 02:53 PM
यथार्थ लिखा आपने 👏👏👌👌
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Varsha_Upadhyay
20-Mar-2023 08:12 AM
बहुत खूब
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Swati chourasia
20-Mar-2023 07:12 AM
बहुत खूब 👌
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