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कुण्डलिया

कुण्डलिया

कामी को संसार यह,लगता मिस्री-घोल।
सुमुखी नारि निहारि मन,उसका जाए डोल।।
उसका जाए डोल, वासना बहुत सताए।
जिसकी ओर न छोर,चित्त उसका घबराए।।
कहें मिसिर हरिनाथ,वासना दे बदनामी।
काम-वासना पाप,अघी होता है कामी।।

लगता सुंदर हो भले,पर मिथ्या संसार।
जो दिखता वो है नहीं,है असत्य आकार।।
है असत्य आकार,आज-कल नहीं ठिकाना।
केवल इतना सत्य, लगा  है आना-जाना।।
कहें मिसिर हरिनाथ,यहाँ बस धोखा पलता।
रहना है दिन चार,भले जग अपना लगता।।
          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
              9919446372

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3 Comments

Renu

23-Mar-2023 08:39 PM

👍👍💐

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अदिति झा

23-Mar-2023 08:05 AM

Nice 👍🏼

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कमाल की कुंडलियां 😍😍

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