लेखनी कहानी -23-Mar-2023
मालविकाग्निमित्रम्
मालविकाग्निमित्रम् कालिदास द्वारा रचित संस्कृत नाटक है। यह पाँच अंकों का नाटक है जिसमे मालवदेश की राजकुमारी मालविका तथा विदिशा के राजा अग्निमित्र का प्रेम और उनके विवाह का वर्णन है। वस्तुत: यह नाटक राजमहलों में चलने वाले प्रणय षड्यन्त्रों का उन्मूलक है तथा इसमें नाट्यक्रिया का समग्र सूत्र विदूषक के हाथों में समर्पित है।
यह शृंगार रस प्रधान नाटक है और कालिदास की प्रथम नाट्य कृति माना जाता है। ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता जो विक्रमोर्वशीय अथवा अभिज्ञानशाकुन्तलम् में है।
कालिदास ने प्रारम्भ में ही सूत्रधार से कहलवाया है -
पुराणमित्येव न साधु सर्वं न चापि काव्यं नवमित्यवद्यम्।
सन्त: परीक्ष्यान्यतरद्भजन्ते मूढः परप्रत्ययनेयबुद्धिः॥
अर्थात पुरानी होने से ही न तो सभी वस्तुएँ अच्छी होती हैं और न नयी होने से बुरी तथा हेय। विवेकशील व्यक्ति अपनी बुद्धि से परीक्षा करके श्रेष्ठकर वस्तु को अंगीकार कर लेते हैं और मूर्ख लोग दूसरों द्वारा बताने पर ग्राह्य अथवा अग्राह्य का निर्णय करते हैं।
वस्तुतः यह नाटक नाट्य-साहित्य के वैभवशाली अध्याय का प्रथम पृष्ठ है। लगभग 2200 वर्ष पूर्व के युग का चित्रण करते इस नाटक में शुंग वंश के काल की कला, संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था आदि की उल्लेखनीय झलक मिलती है। इस नाटक में कालिदास द्वारा स्वांग, चतुष्पदी छन्द तथा गायन के साथ अभिनय के भी संकेत किये गए हैं, जो इंगित करते हैं कि उस युग में भी लोकनाट्य के तत्व विद्यमान थे।
कालिदास ने इस नाटक में अत्यन्त मनोहर नृत्य-अभिनय का उल्लेख किया है। वह चित्र अपने में इतना प्रभावशाली, रमणीय और सरस है कि समूचे तत्कालीन साहित्य में अप्रतिम माना जाता है। नाटक में दो नृत्याचार्यों में अपनी कला निपुणता के सम्बन्ध में झगड़ा होता है और यह निर्णय होता है कि दोनों अपनी-अपनी शिष्याओं का नृत्य-अभिनय दिखाएँ। यह भी निर्णय होता है कि पक्षपातरहित निर्णय के लिए जानी जानेवाली विदुषी, भगवती कौशिकी निर्णय करेंगी कि दोनों में कौन श्रेष्ठ है। दोनों आचार्य तैयार होते हैं, मृदंग बज उठता है, प्रेक्षागृह में दर्शकगण यथास्थान बैठ जाते हैं और प्रतियोगिता प्रारम्भ होती है। इस प्रकार के दृश्य का पूर्ववर्ती साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं हुआ है जबकि परवर्ती फिल्मों और धारावाहिकों में इससे प्रेरणा लेकर आज भी यह दृश्य प्रस्तुत किया जाता है।
अनुक्रम