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लेखनी कहानी -23-Mar-2023

कुमारसंभवम्-9 
 
 नवम् सर्ग
जिन दिनों शिव अपनी प्रिया पार्वती के साथ काम-क्रीड़ा में रत थे, उन्हीं दिनों उनके विनोद भवन में एक कबूतर प्रविष्ट हो गया था। भगवान शंकर ने उसे देखते ही विचार किया, कि निश्चय ही अग्निदेव कपट वेष में आया होगा। क्रोध से महादेव की भृकुटि तन गयीं, इसे देखकर कबूतर सच्चा रूप बनाकर महादेव से विनम्र वाणी में बोला - महादेव! आपने अपनी प्रिया के साथ सौ वर्ष तो इसी प्रकार काम-क्रीड़ाओं में ही बिता दिये। इन्द्रादि देवता आपके दर्शन पाना चाहते हैं। आप अपने वीर्य से ऐसा वीर पुत्र उत्पन्न करने की ड्डपा करें, जिसे देवताओं का सेनापति बनाकर तारकासुर पर विजय प्राप्त हो सके। अग्निदेव की विनती पर भगवान शिव ने अपना वह तेज अग्निदेव को समर्पित कर दिया। उसी समय काम-क्रीड़ाओं में बाधक बने अग्निदेव को पार्वती ने कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। शिव ने अपने वचनचातुर्य एवं प्रेमालापों से पार्वती का क्रोध शान्त किया। उसी समय जया और विजया नाम की सखियों ने पार्वती का शृंगार करना आरम्भ कर दिया। उचित अवसर समझते हुए नन्दी ने महादेव को प्रणाम करते हुए इन्द्रादि देवताओं के उपस्थित होने की सूचना दी। शिव पार्वती के साथ विनोद भवन से निकलकर देवताओं से मिलते हैं। तत्पश्चात् देवताओं को विदा करने के उपरान्त शिव अपनी प्रिया के साथ नन्दी पर आरूढ़ होकर कैलाश शिखर के लिए प्रस्थान करते हैं।

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