सुर्ख इश्क
सुर्ख इश्क🍁
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आज इत्तेफाकन ही
जो ये ख्याल आया
क्यों रंग इश्क का सुर्ख
मन में सवाल आया...
इश्क, हरदम जो नाम से अधुरा
पर खुद में ही मुकम्मल
क्यों हर रंग को छोड़
इसने लाल को ही अपनाया
शायद आरम्भ में अपने उत्साह
और नवीनता की खातिर
या दौड़ता है नस में
लहू की तरह ,इसलिए फिर
या शायद नजरअंदाजी से
चाक होते दिल की तरह
या शायद कल्पनाओं में
दिखते होंगे प्रिय के सुर्ख होंठ
या फिर दो मुकम्मल दिल
ले लेते होंगे इक दूजे की ओट
खैर....
जो भी हो पर कुछ तो है
जो बसता है डी एन ए
की तरह ही हु- ब- हु
तभी तो शायरों की शायरी में
ये है दिल का लहू
क्योंकि बिना दिल के धड़के
धड़कनों के रुकने का अंदेशा है
तभी इश्क इबादत बने
यही प्रकृति का सन्देशा है
पर नित नए परिधानों सा
न बदला जाए इश्क
इसलिए इसे रब सा समझ
करो इसकी इबादत
जो न साथ छोड़े
जब हो भी कयामत
चिर अनन्त और अटल
जैसे प्रकृति का साथ
कोई न हो तब भी अपने
सर पर हरदम माँ का हाथ
आज भी माँ सोचते ही
लाल चूड़ी,बिंदी
और सिंदूर ही
आंखों में उतर आता है
शायद तभी इश्क का रंग भी
सुर्ख ही बन जाता है
शायद तभी इश्क का रंग भी
सुर्ख ही बन जाता है
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#मौलिक व स्वरचित
कावेरी लिली🍁
Punam Prasad
28-Dec-2021 08:17 PM
👏👏👍👍
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उदय बीर सिंह
09-Mar-2021 10:18 PM
बहुत खूब
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Author Pawan saxena
07-Mar-2021 09:35 PM
very Good
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