रक्षक (भाग : 17)
रक्षक भाग : 17
रक्षक का शरीर नीला पड़ता जा रहा था। आँखे बंद हो चुकी थी।उजाले के सारे सिपाही धीरे धीरे कर अपना हौसला खोने लगे थे, परन्तु अभी भी 4J, यूनिक और अनोखे मददगार अपनी पूरी जान लगाकर लड़ रहे थे।
"ये रक्षक है! किसने दी तुम्हे इस नाम की पदवी" - पंचभूत, रक्षक का गला पकड़ ऊपर उठाते हुए जोर से बोला पर रक्षक के तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही हुई ।
" जो खुद की जान नही बचा सकता वो उजाले की क्या रक्षा कर सकेगा? हाहाहा अगर ये रक्षक है तो बाकी पिद्दी बैठे होंगे यहाँ, क्या सर्पितृलों को इन्हें रोकने के लिए लाया गया है!"
"शांत हो जाओ पंचभूत! दुश्मन कैसा भी हो उसे कभी कमज़ोर नही समझना चाहिए!" - कुटिल मुस्कान लिए हुए तमसा बोली।
आधी सेना तो रक्षक के इस अवस्था मे होने के कारण उम्मीद खो बैठी, बाकी सब किसी तरह सर्पितृलों से युद्ध कर रहे थे।
जय के मस्तिष्क में एक विचार आया, परन्तु उसे कार्यान्वित करना अत्यंत कठिन था। जय ने गौर किया कि कटने के बाद नए अंग से नया सर्पितृल बनने में थोड़ा समय लगता है, अगर उस समय मे वो अंग किसी दूसरे सर्पितृल से जोड़ दिया जाए तो इसका क्या असर होगा, शायद इसका परिणाम घातक हो सकता है पर यह खतरा मोल तो लेना ही होगा।
लेकिन मुख्य समस्या यही थी, अंश बहुत ज्यादा थके होने के कारण तेज़ गति से यह कार्य नही कर सकता था और रक्षक अभी इस अवस्था मे नही था कि कुछ कर सके।यूनिक अंगों के काटने में काम आ सकता था पर नया प्राणी बनने से पहले जोड़ पाना उसके बस की बात नही थी और अगर उनका रक्त खुद पर गिर गया तो सारी योजना उल्टी पड़ जाती।
सर्पितृलों का पलड़ा भारी पड़ने लगा था, यूनिक की भाषाई समस्या दूर नही हो रही थी यहाँ तक कि अब वो जय की बात भी नही सुन रहा था। सैकड़ो सर्पितृल यूनिक से चिपककर उसके पुर्ज़े खाने लगे, तीन तीन सिर और लंबे नाखूनो वाले हाथ होने के कारण वो यूनिक को भारी मात्रा में क्षति पहुँचा रहे थे।
"अबे कितना खाओगे, लगता है हमको मार गिराओगे
अब तो ऐसा काटेंगे बेटा तुमको, खुद से तुम जुड़ न पाओगे"
- यूनिक फिर बकबकी करने लगा, पर उसके कथन पर किसी ने गौर न किया, लेकिन जय ने "खुद जुड़ न पाओगे" वाली पंक्ति जोर देकर गौर किया, उसे लगा यूनिक भी उसको उसी की योजना की तरफ इशारा कर रहा है पर सवाल अब भी वही था इसको अमल मे लाएगा कौन?
आज की दोपहर भी होने को थी, आज से पहले कभी किसी ने इतना लंबा युद्ध लगातार नही लड़ा था। पर सर्पितृल तो जैसे थकने का नाम ही नही ले रहे थे।
तभी एक हवा का बहुत तेज़ झोंका सा आया, जिसके साथ मिट्टी का एक रेला उड़ रहा था, जिसमें हज़ारो सर्पितृल उड़ गए, इतनी तेज गति होने के कारण कोई देख नही पाया कि इतनी तेज हवा कहाँ से आई, पंचभूत और तमसा भी हैरान हो गए कि ये कौन है? कहाँ से आ गया? अगले पल जब पंचभूत ने अपने नीचे देखा तो हैरान रह गया रक्षक वहां से गायब हो चुका था, जब वो एक कदम और आगे बढ़ा तो उसे एहसास हुआ कि उसने गलती कर दी, वहां केवल ऊपर की जमीन थी, जमीन के नीचे गहरा गड्ढा था, जो ठोस मिट्टी की परत से ढका हुआ था, पंचभूत के वहां पांव रखते ही वह टूट गया और पंचभूत उस युद्धभूमि की धरती में समा गया, तमसा का मुँह खुला का खुला ही रह गया, वो बड़ी हैरानी से यह सब देख रही थी पर उसे अब भी समझ नही आ रहा था कि यहां चल क्या रहा है।
सामने देखने पर सैकड़ो हज़ार सर्पितृल और उजाले के सैनिक धरती पर पड़े हुए थे, अंश अपने तीक्ष्ण दृष्टि से उस नई विपत्ति को देखने का प्रयास करता है पर उसकी रफ्तार इतनी ज्यादा थी कि उसे देख पाना असंभव हो रहा था।
अचानक उसके सामने यूनिक आ गया तेज़ गति होने के कारण वो खुद को रोक नही पाया अगले पल में यूनिक धरती पर पड़ा हुआ था इसके कारण यूनिक के सर्किट्स हिल गए।
जय अब तक यह समझ पाने में असफल था कि यह दोस्त है या दुश्मन क्योंकि जहां उसने आधे से ज्यादा सैनिको को धरती सूंघा दिया था वही रक्षक को भी गायब कर दिया था और साथ ही में पंचभूत को जमीन से नीचे गिरा दिया, यह सब होने में पाँच सेकंड से ज्यादा समय नही लगा था। अचानक से भूचाल रुक गया, सामने खड़े शख्स को देखकर जय हैरान था, उसने अब तक सुना था कि ऐसी कोई शक्ति है पर आज वो उसे अपनी आंखों के सामने देख रहा था।
नीली-गुलाबी पोशाक में लंबे बाल अब भी उड़ रहे थे, आंखों पर विशेष सुरक्षा ग्लास लगे हुए थे जो तेज़ गति से दौड़ने के समय देखने के लिए मदद करते थे। उसके सीने पर एक गोल चक्र बना हुआ था। यूनिक उठकर खड़ा हो गया था उसने भी उस रहस्यमय शख्स की ओर देखा।
"संयुक्त तुम!" - यूनिक आश्चर्य भरे स्वर में बोला।
"क्या तुम संयुक्त हो!" - जय ने वही सवाल और अधिक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।
"हाँ! मुझे अचानक से लगा जैसे मुझे किसी ने बुलाया हो और वो मुझे मेरे खुद के होने का एहसास दिला रहा था, ऐसा लगा जैसे मुझे खुद को मेरी जरूरत पड़ गयी इसलिए मैं संसार की सर्वोत्तम गति से दौड़कर यहां आया हूँ।" - संयुक्त ने उनको जवाब दिया।
"तुम तो हमारे जवाब देने के बजाए हमे ही उलझा रहे हो, हमने तुम्हे ढूंढने के कई असफल प्रयास किये पर तुम कभी नही मिले, आज कहते हो तुमको किसी ने बुलाया और तुम्हे लगता है कि वो तुम खुद हो!" - जय अपने सर पर हाथ मारते हुए बोला।
अब तक सर्पितृल उठकर खड़े हो चुके थे। वो अब संयुक्त की तरफ दौड़ रहे थे, संयुक्त तेज़ी से उनकी तरफ दौड़ने को तैयार हुआ, जय ने उसे रोकने की कोशिश की पर असफल रहा। जय ने अपने सारे साथियो को सिग्नल देकर एक तरफ से लड़ने को बोला, थोड़ी ही देर में उजाले के सारे सैनिक और प्रतिनिधि एक तरफ आकर खड़े हो गए थे, जय ने उनके कान में कुछ फुसफुसाया, सब एक दूसरे से वही बात आगे बढ़ाने लगे। अब तक संयुक्त सारे सर्पितृलों को दुबारा जमीन सूंघा चुका था जिन्हें यूनिक ने अब लाइव मेटल की सलाखों से लपेटकर बांध दिया।
"रक्षक कहाँ है? उसे क्या हुआ?" यूनिक ने संयुक्त से रक्षक के बारे में पूछा।
"वो जो वहाँ पड़ा हुआ था, वो यहां सुरक्षित स्थान पर है और कैसा है ये मैं नही बता सकता!" - संयुक्त बोला।
फिर संयुक्त, यूनिक को पीछे छोड़ जय के पास पहुँच गया, जहां जय ने उसे अपनी योजना बताई, तमसा एक नए मददगार को देखकर क्रोध से भर गयी थी, वो जोर जोर से दहाड़ने लगी उसकी आंखें काली होने लगी।
"शांत हो जाओ तमसा" - उसके पीछे से एक स्वर गूंजा।
"कौन?" - तमसा ने तुरन्त मुड़कर आवाज की दिशा में देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आयी।
"पंचभूत अभी जिंदा है, जमीन के भीतर उलझनों से निपटने में थोड़ा वक्त लग गया पर ये कभी मत समझना कि मैं हार सकता हूँ। वो चाहे जितनी।महाशक्तियां बुला लें, जीत हमारी ही होगी हाहाहाहा" - पंचभूत अपने पाँचों सिरों को आपस मे जोड़कर चारो तरफ निगरानी करने लगा था, उसके भीषण अठ्ठाहस चारो तरफ की आवाज को खुद में दबा दे रहा था।
पंचभूत अपने सैनिकों को एक ऐसी कैद में देखकर थोड़ा परेशान हुए जो खुद-ब-खुद अपना रूप बदलती रहती है पर उसे पता था कि कोई भी उन्हें ज्यादा देर तक कैद करके नही रख सकता। वो इस बार उजाले के सभी प्रतिनिधियों को मार कर इस ग्रह को नेस्तोनाबूद कर देना चाहता था। उसने पहले कभी किसी युद्ध को जीतने में इतना समय नही लगाया था।
वो अंश की ओर हवा में उठकर बढ़ता है,जो उससे कुछ ही दूर सर्पितृलों से लड़ने में व्यस्त था। वह एक भाला अंश की ओर फेंकता है, लेकिन अचानक से वो भाला उसकी ही दिशा में आने लगता है, पहले तो पंचभूत को यह दृष्टिभ्रम प्रतीत होता है, पर जब उसे सत्य का पता चलता है तब तक भाला उसके एक सिर में घुस चुका था।
उसके सामने था एक स्यामवर्ण, अधफटी पोशाक पहने हुए रक्षक! जिसके बाल हवा में लहरा रहे थे, हाथ मे चमकती तलवार काली पड़ चुकी थी, रक्षक की आंखे भी काली हो चुकी थी।
उधर जय ने अपनी योजना पर अमल करना आरंभ कर दिया, वो सारे अपने हथियारों से सर्पितृलों का कोई अंग काटते जाते जिन्हें संयुक्त नए प्राणी बनने से पहले ही दूसरे सर्पितृल के कटे भाग से जोड़ देता और उनकी पूंछ को कटे भाग से जोड़कर सील कर देता, जय योजना काम करेगी या नही यही सोच रहा था, पर थोड़ी देर में सर्पितृल एक एक कर जलने लगे, तमसा यह देखकर हैरान हो रही थी कि आखिर ऐसा कैसे संभव है, इन्होने सर्पितृलों की कमज़ोरी कैसे ढूंढ निकाली!
रक्षक अब पंचभूत से जा भिड़ा, बाकी सब भी उसकी मदद करने आगे बढ़े पर रक्षक ने उन्हें हाथ के इशारे से रोक दिया, यह देखकर पंचभूत मुस्कुराया, उसने अपना एक सर अपने धड़ से अलग कर दिया जिससे एक विशालकाय राक्षस का जन्म हुआ। वो राक्षस यूनिक से भी ऊंचा, विशुद्ध काला, आंखे बड़ी बड़ी लाल लाल, हाथ जैसे कटारिया से लैश हों, चेहरा इतना भयानक था कि देखकर डर लगने लगे, सीने पर एक विचित्र गोल घेरा था जो सामान्य ही था पर उसपर अजीब जीव जो देखने में ऑक्टोपस के हाथ जैसे थे, निकले हुए थे, यह देखने मे बहुत ही भयानक लग रहा था।
रक्षक यह देखकर जरा भी हैरान नही हुआ, वह पंचभूत के हर शक्तिवार को आसानी से अवशोषित किये जा रहा था, तमसा के साथ साथ रक्षक के सभी साथी भी यह देखकर हैरान हो रहे थे, यूनिक और संयुक्त उस विशालकाय राक्षस से लड़ने में जुट गए।
जय ने वही तरीका विशालकाय जीव जो खुद को सिडान्ध कह रहा था आजमाने की सोची, पर संयुक्त ने मना कर दिया। सिडान्ध ने एक जोरदार पंच यूनिक को मारा, जिससे यूनिक थोड़ी दूर जा गिरा। अंश अपनी तलवार से उसके सीने में आर पार कर दिया, जय अभी कुछ समझ नही पा रहा था, उसे लग रहा था कि अब भी कुछ तो गड़बड़ है, ये खुद पंचभूत का ही एक भाग है, इसे हरा पाना इतना आसान नही होगा, संयुक्त हवा में सिडान्ध के चारो तरफ दौड़ते हुए एक चक्रवात उत्पन्न करने लगा, जिसमे अंश भी उसकी मदद करने लगा, थोड़ी ही देर में वह राक्षस चक्रवात में।कैद था जिसके चारों तरफ अंश की बिजली और जयंत के चैन का घेरा बना हुआ था, पर यह सुरक्षा घेरा भी सिडान्ध को ज्यादा देर तक नही रोक सका।
उधर रक्षक पंचभूत के हर वार का अच्छी तरह से जवाब दे रहा था। उसने पंचभूत की दोनों पूँछो को आपस मे गांठ मार दिया था, और अब पंचभूत को लगातार घुसे बरसाए जा रहा था और पंचभूत भी मुस्कुरा रहा था उसके मस्तिष्क में शायद कोई नई योजना पनप चुकी थी।
क्रमश:
Niraj Pandey
08-Oct-2021 04:35 PM
बहुत ही बेहतरीन👌👌👌
Reply
मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:05 AM
Thanks
Reply
Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 12:18 PM
नाइस पार्ट
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मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:05 AM
Thanks
Reply
🤫
22-Sep-2021 09:29 AM
इंटरेस्टिंग.. ...😊
Reply
मनोज कुमार "MJ"
11-Oct-2021 07:05 AM
Thanka
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