सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन,
तत्पश्चात "लेखनी' मंच को नमन,
मंच के सभी श्रेष्ठ सुधि जनों को नमन,
कविता
विषय:- 🌹 स्वैच्छिक 🌹
शीर्षक -- 🙏 हे रघुनाथ घट घट के वासी 🙏
दिनांक -- ३०.०३.२०२३
दिन -- गुरुवार
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हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
सदियों बाद अब पूर्ण हुआ, भारत का जो सपना था,
अवध नगर में राम लला का, पूर्ण रूपेण स्थापना था।
अपने भारत देश में रहकर, हम बने हुए थे वनवासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
सीता मैया को हरकर, जो अपने अभिमान में ऐंठा था,
चँद्रहास शक्ति के बल पर, लंका में छुपकर बैठा था।
उसी तरह रावण बने बैठे, हैं अपने देश के कुछ वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
लगता है अपने भारत में, राम राज्य फिर से आयेगा,
रघुकुल शिरोमणि का अब, वनवास खत्म हो जायेगा।
लौटकर अब आयेंगे प्रभु, अयोध्या मथुरा या हो काशी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
उठो जागो हे भारत वासी, अब वक़्त नहीं है सोने का,
अपने देश की बागडोर, अब भूलकर भी नहीं खोने का।
मंथरा की टोली है देश में, जो तेरे गुलामी की है प्यासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।
🙏🌷 मधुकर 🌷🙏
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
Abhinav ji
31-Mar-2023 07:58 AM
Very nice 👌
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Varsha_Upadhyay
30-Mar-2023 08:34 PM
शानदार
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sunanda
30-Mar-2023 05:32 PM
nice
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