Add To collaction

दस्तूर

#दस्तूर 

एक एक करके जैसे चाहा वैसे छल गया,
और मैं मन मुताबिक सांचे में ढल गया।

और कितना बाकी है तराशना तकदीर को,
जहां जरूरत नहीं वहां से मैं निकल गया।

किस्मत समझ कर वक्त को नाकामयाब रहा,
निर्णय लेने में मैं सिक्के की तरह उछल गया।

क्या दर्द से कभी भी कोई आजाद हो पाएगा,
हमदर्द देख के पत्थर अश्क भी पिघल गया।

अच्छे बुरे समय में लोग होते नही एक से,
देख कर सब के मिजाज मैं भी बदल गया।

नहीं आता वो लम्हा जिसे जीना चाहा कभी,
टूटे हजार टुकड़े दिल के आखिर सम्हल गया।

नहीं होता एहसास किसी के पाक इरादे का ,
दस्तूर है दुनिया का सोच के मन बहल गया।

डॉ प्रणाली श्रीवास्तव
स्वरचित

#pranalipoetriesforyou 
#everyone #हिंदीसाहित्य #facebookpost #instagram
#office

   20
8 Comments

Wahhhh wahhhh Bahut hi उम्दा सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ

Reply

बेहतरीन

Reply

अदिति झा

02-Apr-2023 08:23 PM

V nice 👍🏼

Reply