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जलेबी!

जलेबी!

हुस्न-ओ-शबाब से  कसी है  जलेबी, 
गर्म  आँच पे  खूब  तपी  है  जलेबी।
तुर्को   ने  लाया    भारत  में     देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

व्यंग्य   से   भरी  है  इसकी  कहानी,
फीकी   न  पड़ती   इसकी  जवानी।
खुशबू  है  अंदर,   खुशबू   है  बाहर,
खुद को मिटाकर   चमकी   जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से कसी  है जलेबी, 
गर्म  आँच  पे खूब तपी  है  जलेबी।
तुर्को  ने    लाया    भारत  में   देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

जिन्दगी - जलेबी   दोनों   में  झाँको,
खट्टी-  मीठी  बातें  लोगों  में  बाँटो।
राष्ट्रीय  मिठाई  का  पाई  है  तमगा,
हूर  के  जैसी  ये  दिखती   जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से  कसी है जलेबी,
गर्म  आँच पे  खूब  तपी है  जलेबी।
तुर्को   ने   लाया   भारत   में   देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

लड्डू, इमरती से  ज्यादा है बिकती,
बर्फी  औ  पेड़ा  से  देखो  है सस्ती।
गरीबों का  आँसू  सदा से  है  पोंछी,
हर   उम्रवालों   को  भाती  जलेबी।
हुस्न-ओ-शबाब से कसी है जलेबी, 
गर्म  आँच पे खूब  तपी है  जलेबी।
तुर्को   ने    लाया   भारत  में  देखो,
लज्जत जिन्दगी की बढ़ाती जलेबी।

        रामकेश एम.यादव, मुंबई
      (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक )

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4 Comments

बेहतरीन

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Milind salve

02-Apr-2023 09:40 PM

बहुत खूब

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अदिति झा

02-Apr-2023 07:57 PM

V nice

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