Tania Shukla

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हार्टलेस


सोनल भैया कहां है तुम्हारा.. अभी छत से नीचे नहीं आया क्या ?


जी मां वो वही लेटे हुए है सोनल ने किचन में कप धोते हुवे बताया.. 


ठंड हो गई है नीचे बुला ला उसे नहीं तो ठंड लग जाएगी, सरस्वती ने कहा..


जी मां जा रही हूं, सोनल ने कप रखा और उप्पर जाने के लिए कदम बढ़ाये है थे तभी सरस्वती ने फिर से कहा.. 

अच्छा रुक मैं ही जाती हूं तू अपनी सभी चीजें अच्छे से याद कर के रख ले ।


ओके मां कहती हुए सोनल सामान रखने लगी और मीनल एक तरफ मुंह को बनाएं बैठी रही, वो गुस्से से सोनल को सामान रखते हुवे देख रही थी, उसने सभी सामान देखे भी नहीं थे,.. सोनल ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुवे और अच्छे से अपने सामान को रखने लगी..


देवाशीष अभी भी अपनी चारपाई पर लेता हुआ था उसकी ऑंखें बंद थी, तभी उसको किसी की आहट हुई वो जल्दी से उठ कर बैठ गया, उसने अपने आँखों पर हाथ फेरा और देखने लगा कौन है,.. उसने देखा उसकी माँ उसके पास चली आ रही थी..


देवा यहां क्या कर रहा है बेटा ,चल निचे यहां ठंड लग जाएगी उन्होंने आते हुवे कहा..


मां आप क्यू परेशान हुई मैं तो आने ही वाला था नीचे देवाशीष ने जल्दी से कहा ।


कोई परेशानी नहीं होती बेटा एक मां को अपने बच्चो के लिए कुछ भी करने में.. तू इतनी सी उम्र में कितना समझदार हो गया है अपनी मां और बहनों की भावनाओ को समझता है अपनी बहनों का साथ देता है, अभी सोनल ख़ुशी से नीचे सामान रख रही है मैं बहुत खुश हूं बेटा.. 

जो प्यार और सम्मान तुम्हारे पापा को हमको देना चाहिए था वो तू देता हैं यह बहुत है मेरे लिए


देवा के सिर पर हाथ फेर कर उस पर निहाल हुए जा रही थी सरस्वती, 


मां आप भी ना…  ,,,,  कितनी सीधी और प्यारी हो, आप सच में कुछ नहीं जानती बाहर की दुनिआ के बारे में.. अब लेडीज़ पहले जैसी नहीं है आप भी थोड़ा सा बदलो अपने आपको,.. आप पापा से कुछ तो बोला करो जब वो अपनी मन मानी करते है अपने दिल का भी कुछ काम क्या करो,


अच्छा, अच्छा अब चल नीचे, बहुत देर हो गयी है यहाँ पर,..

वो दोनों नीचे आ गये.. देवाशीष अपने कमरे की तरफ बढ़ गया,.. 


सरस्वती रसोई में अपने पति के लिए दूध गर्म करने चली गई और देवाशीष अपने कमरे में किताब लेकर बैठ गया.. इससे अच्छा टाइम पास कोई नहीं था उसके पास..


दूध लेकर सरस्वती अपने कमरे में पोह्ची, उसने देखा तो बलवीर अभी जाग रहे थे, वो बहुत गंभीर होकर कुछ सोच रहे थे.. यह लीजिए हल्दी वाला कम चीनी का दूध… सरस्वती ने कहा


ठीक है रख दो, उन्होंने गंभीरता से कहा…


सरस्वती गिलास रख अपनी तरफ आ कर बैठ गई, उसने उनको गौर से देखा, वो समझ रही थी की कुछ ज्यादा ही गंभीरता वाली बात है,... वैसे वो हमेशा गंभीर ही रहते थे लेकिन अभी कुछ ज्यादा ही लग रहें थे.. 


क्या बात है जी ? आप कुछ परेशान से है कुछ हुआ है, क्या बाजार में काम तो सही चल रहा है ना आपका.. या कोई और परेशानी हैं ।


हां काम सब सही चल रहा है, पर तुम आज कल अपनी बेटियों पर कम ध्यान दे रही हो अगर ऐसा ही चलता रहा तो देखना कहीं हाथ से न निकल जाए ये दोनों ।


कैसी बात करते हैं आप,, सरस्वती के मुंह से दबी सी आवाज निकली 


मेरी बेटियां ऐसी नहीं है वो कोई ऐसा काम नहीं करेगी जिस से उनके परिवार का सर झुके, और सोनल अगर जा रही है वो अकेली नहीं है उसके साथ उसकी और सहेलियां और टीचर भी तो जा रही है ।

आज जमाना बदल गया है थोड़ा खुला पन तो देना ही चाहिए बच्चो को नहीं तो आगे चल कर इनको ही परेशानी का सामना करना पड़ता है । हमारा जमाना अलग था, तब हमको…. 


चुप रहो तुम, उन्होंने थोड़ा तेज़ आवाज़ में कहा, जिससे सरस्वती अपनी बात बोलते बोलते एक दम चुप हो गयी…

लड़कियों के लिए कभी जमाना नहीं बदलता उनको अपनी मर्यादा में भी रहना चाहिए हमेशा.. समझ लो तुम यह बात अच्छे से और दोनों बेटियों को भी समझा देना, 


जी ठीक है सरस्वती ने बात खत्म करने के लिए बोला..  और लेट गई, हालांकि उसका दिल दुख गया था, वो कभी किसी भी बारे में कोई बहस नहीं करती थी, जैसा होता मान लेती थी.. पर किसी को पता नहीं था वो अंदर से कितना रोटी थी जब उसको ऐसे झिड़क दिया जाता था, इस घर में अपना सब कुछ देने के बाद भी उसकी बात के कोई मायने नहीं थे उसके पति की नज़र में..  


वो पुराने दिनों की कड़वी यादों में न चाहते हुए भी चली गई जब उसकी नई नई शादी हुई थी तो उसे घूमने फिरने का कितना शौक था, पीहर में पिता हमेशा यह कह कर मना कर देते थे कि अपने पति के साथ जाना जहा भी जाना हैं 

और पति, उनको तो यह सब फालतू बातें और फिजूल खर्ची लगता था तब इनकम भी ज्यादा नहीं थी उसका शौक ऐसे ही रह गया.. कभी किसी ने नहीं पूछा की क्या उसका भी दिल करता कुछ करने का.. 


एक बार उसने कोलकाता में हिम्मत की थी  तब तो बच्चे भी नहीं हुए थे और उसके सास ससुर बनारस में थे तब वो हिम्मत कर के  बहुत मन से तैयार हुई थी कि आज वो बोल देगी की आज बाहर घूमने जायेगे और फिर बाहर ही कुछ खा कर आ जाएंगे.. 


वो सजी धजी इंतजार कर ही रही थी दरवाजे पर टकटकी लगाए 

कि बलवीर आएंगे और उससे पूछेंगे की इतना तैयार क्यों हो कहाँ जाना हैं, वो घर आये और उसको ऐसे तैयार देख दरवाजे से ही चिलाना शुरू कर दिया था.. इतना किस के लिए सज संवर कर बैठी हो, कौन आया था यहाँ.. या कहां जाना चाहती हो


आपके साथ ही बाहर घूमने जाने का मन था मेरा, मुझे तो लगा था आप खुश हो जाओगे पर आप तो .......


अच्छे घर की बहू बेटियों का यू लाली लिपिस्टिक लगा कर बाहर घूमना शोभा नहीं देता, आगे से मैं ये सब ना देखु.. घर के कामो में मन लगाओ.. बलवीर की कठोर आवाज में सरस्वती के सारे अरमान बह गए पूरी रात वो पिता और पति में अंतर खोजती रही पर उसे दोनों ही एक से पुरुष लगे जो नारी को बस दबाना चाहते हैं चाहे वो किसी भी रूप में हो उसके बाद कभी वो तैयार नहीं हुयी.. अगर कहीं जाना भी होता था तो बहुत सादे कपडे पहन कर जाती, और उसने अपने शौक को वहीं उस दिन ही ख़त्म कर दिया था..

 

अतीत का वो ही रूप उस फ़िर से देखाई दे रहा था, जो अब उसकी बेटियों को दबाना चाहता था 


सरस्वती खुद को आज भी उतना ही लाचार और कमजोर महसूस कर रही थी जैसा कि आज से 26 साल पहले वो थी पर उसे अब यह सुकून था कि उसका बेटा, अपने पिता या नाना जैसा नहीं है वो अपनी मां और बहनों की भावनाओ को समझता है और उनका साथ भी देता है ।


नारी होना नारी ने जाना पुरुष ने क्या ख़ाक पहचाना.. 


सरस्वती अपने इन्ही सब विचारों में खोई पता नहीं कब नींद के आगोश में चली गई ।


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7 Comments

Babita patel

07-Aug-2023 10:17 AM

Nice

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RISHITA

06-Aug-2023 10:42 AM

Beautiful part

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Reena yadav

22-Jun-2023 08:19 PM

"नारी होना नारी ने जाना, पुरुष ने क्या खाक पहचाना "💐😇

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