सहचरी
युगो युगो से सहचरी तुम्हारी
सृष्टि की लालन पालन हारी
नव शरीर की संरचना करती।
निर्माता और अधिष्ठात्री।
नाज सदा अपनी पर करती,
शक्ति स्वरूपा दुर्गा नारी
नर हो तुम तो नारायणी में
,मेरे बिन जीवन अपूर्ण ।
धरा बन जग को जीवन देती ,
पालवित पुष्पित भी करती।
जीवनदायिनी में गंगा सी ,
कल -कल करके बहती ।
प्यास बुझाती अमृत बन में
शीतलता मन को कर देती।
मैं ज्ञानदायिनी ,न्याय कारिणी ,
शारदा बन बुद्धि का विकास करती।
सहनशीलता गुण है मेरा ,
हर किसी का सम्मान करती।
मुझको ना सताओ तरसाओ ,
काली बनने पर ना मजबूर करो।
संस्कारों में बंधी हूं, मैं
एक नाजुक सी डोर हूं मैं,
कंधे से कंधा मिलाकर चलती हूं,
हरदम मेहनत करती हूँ
ना मैं बेचारी ना मैं अबला हूं ,
मैं सुंदर शांत स्वरूपा।
ना कहो कमजोर हूं
मैं सहना मेरी कमजोरी है ।
पर प्यार तुम्हीं से करती हूं
प्यार तेरे पर मरती हूं
घर गृहस्थी संवारने को
सब कुछ सह जाती हूं ।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
Abhinav ji
15-Apr-2023 08:49 AM
Very nice 👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Apr-2023 07:15 AM
पालवित की जगह पल्लवित होना चाहिए
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Apr-2023 07:12 AM
नारायणी में नहीं "मैं" होना चाहिए ,,,, नर हो तुम तो नारायणी मैं,,, अमृत बन मैं,,, न कि अमृत बन में
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