ग़ज़ल
🌹🌹🌹 *ग़ज़ल* 🌹🌹🌹
जिससे आती है बू बग़ावत की।
उससे क्या रखनी आस उल्फ़त की।
मस्त नज़रों से उसने क्या देखा।
उड़ गयीं धज्जियाँ शराफ़त की।
मैंने क़ातिल को कह दिया क़ातिल।
दाद दो मुझको मेरी जुरअत की।
रुख़ बदल कर सलाम लेते हो।
यह तो तौहीन है मुहब्बत की।
दिल दुखाया है जिसने मादर का।
मार पड़नी है उसपे क़ुदरत की।
ज़ातो मज़हब के नाम पर झगड़े।
यह शरारत है सब ह़ुकूमत की।
रो पड़ोगे फ़राज सुन कर तुम।
छोड़िए बात उसकी ह़रकत की।
सरफ़राज़ हुसैन फ़राज़ मुरादाबाद।
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Sarfaraz
15-Apr-2023 06:38 PM
شکریہ
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